ज्ञान न पूछो वामी का, पूछ लीजिये जात।
दलित क्यों नहीं पॉलिटब्यूरो में, पूछो मार के लात !
हमेशा आपको आप हजारों सालों से गुलाम (दास) हैं यह कुछ समाजोंघटकों के मन पर पीढी दर पीढी बिंबित करते रहना, फिर उस संदर्भ में आपको इस तथाकथित दास्यत्व से बाहर आना आवश्यक है यह बार बार समझाना, एवं उस पश्चात आपको इस तथाकथित दास्यत्व से बाहर निकालने हेतू सातत्यपूर्ण ढंग से एक काल्पनिक शत्रू को आपके सामने खडा करना, उदाहरण किसी एक समाज को लक्षय करके - प्रथमत: वैचारिक और उस पश्चात सामरिक विद्रोह के लिये आपको प्रवृत्त करना यह वामपंथी/साम्यवादी/नक्षलवादी मानसिकता के लोगों का प्रयत्न रहा है. फिर जिन्हें ये गुलाम बतलाने इच्छुक हैं वो समाज अथवा व्यक्ती कितना भी कौशल्यविकसित, उच्चशिक्षाप्राप्त, एवं समृद्धी की ओर अग्रेसर क्यों न हो!
कल राष्ट्रीय लोकतंत्र मोर्चा (एन.डी.ए.) के राष्ट्रपतीपद के प्रत्याशी के नाम की घोषणा होते ही जो विरोधक, वामपंथी/साम्यवादी/नक्षलवादी एवं उनके समर्थक, तथा बिकाऊ मिडीया एवं उनके सोशल मिडीया पर पडे खच्चरों की निराशा से उत्पन्न बैचैनी और विषवमन दृग्गोचर हो रहा है वह इस बात पर है की अब सारे दुनिया को पता चल जाएगा कि संघ है क्या. यह बात कोई रोकॅट साईन्स तो नहीं थी कि भारतीय जनता पक्ष सर्वसहमती के हेतू एक दलित, उच्चशिक्षित, राजनीतीका अनुभवी, एवं संघ की विचारधारा रखने वाला कोई प्रत्याशी की खोज कर रही थी.
श्री रामनाथ कोविंदजी इन सारे निकषों में खरे उतरते हैं. वे दलित हैं, इतना ही नहीं वे गरीब किसान कुटुंब से आते हैं, दिल्ली उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में वे १६ वर्ष वकील थे, आय.ए.एस. परीक्षा उत्तीर्ण हैं, कुछ शैक्षणीक संस्थाओं के व्यवस्थापक भी रहें हैं, केवल इतना ही नहीं उन्हे संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत का प्रतिनिधित्व करने का एवं संयुक्त राष्ट्रसंघके आमसभा को संबोधित करनेका भी अनुभव प्राप्त है. संघी है तो पृथक बताना आवश्यक नहीं कि उन्हें सामाजिक कार्य में रुचि है अपितु अनुभव भी प्राप्त है. अब कुछ वर्षों से वे बिहार के राज्यपाल हैं. हां, यह वहीं है, जिन्होनें "अपेक्षित" के स्थान पर "उपेक्षित" कहने पर तेजस्वी यादव को पूरी शपथ पुन: पढने का आदेश दिया था.
परंतु उपरोक्त विरोधकों को यह बात पच नहीं रही की ऐसा व्यक्ती एक संघी है. हेतूपूर्वक इस शब्द का प्रयोग किया है क्योंकी बिकाऊ पत्रकारों को और संघ के अंधविरोधकों को इस शब्द का उपयोग करने के अभ्यस्त हैं. ये संघ के समर्थक ही नहीं अपितु संघ विरोधकों को भी ज्ञात है कि संघ मे किसी की जाति पूछी तक नहीं जाती, एवं नहीं साथ साथ संघ शाखा में जाने वाले लोगों मे जाती कोई महत्व नहीं रखती. इतना ही नहीं अनेक विजातीय संघ कार्यकर्ताओं के आपस में केवल रोटी ही नही बेटी व्यवहार भी हैं.
आज तक संघ को सातत्य से ब्राह्मणो एवं उच्च जातीयों के संगठन के रूप में संघकार्य से अपरिचित जनमानस के मन पर बिंबित करने में इन अंधविरोधकों नें कोई कसर नहीं छोडी थी. इसको पहली चोंट तब पहुंची जब श्री नरेन्द्र मोदी जो किसी तथाकथित उच्च जाती से संबंध नहीं रखते वे प्रधानमंत्री बने. परंतु उनका विरोध करने के हेतू विरोधकों के पास अन्य विषय थे. श्री रामनाथ कोविंदजी के विषय में ऐसा कुछ भी नहीं है.
विरोधीयों का दु:ख यह है कि इस बार राष्ट्रपतीपद के प्रत्याशी के दलित एवं संघी होने के कारण अब संघ एवं भारतीय जनता पक्ष के चारित्र्यहनन के लिये उनको जाती का आधार कैसे मिलेगा? मिडीयाकी जो तिलमिलाहट दृग्गोचर हो रही है, वह इस हेतू है की सालों पुराने संघ एवं भाजपा के दलितविरोधी होने की कहानियों की बाढ लाने मे वे इस बार पूरी तरह से असफल रहे हैं. अब यह बात विश्व के सामने बार बार आयेगी की भारतवर्ष का राष्ट्रपती दलित है एवं संघी भी है. अर्थात, यह बात विश्व को दृग्गोचर होगी की संघ जातीवादी तो है ही नही, अपितु संघ हर जाती के लोगों को राजनीती में उच्च स्थान प्राप्त कर देशसेवा करने हेतु समान अवसर प्राप्त कराता है.
मिडिया की इस छटपटाहट से हर राष्ट्रवादी भारतीय को गुदगुदी तो अवश्य हो रही है. मुझे भी होना आश्चर्य की बात नहीं. आप भी मजे लिजीये.
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
।। भारत माता की जय ।।
|| वंदे मातरम् ||
© मंदार दिलीप जोशी
जेष्ठ कृ. १०, शके १९३९ | योगिनी एकादशी
दलित क्यों नहीं पॉलिटब्यूरो में, पूछो मार के लात !
हमेशा आपको आप हजारों सालों से गुलाम (दास) हैं यह कुछ समाजोंघटकों के मन पर पीढी दर पीढी बिंबित करते रहना, फिर उस संदर्भ में आपको इस तथाकथित दास्यत्व से बाहर आना आवश्यक है यह बार बार समझाना, एवं उस पश्चात आपको इस तथाकथित दास्यत्व से बाहर निकालने हेतू सातत्यपूर्ण ढंग से एक काल्पनिक शत्रू को आपके सामने खडा करना, उदाहरण किसी एक समाज को लक्षय करके - प्रथमत: वैचारिक और उस पश्चात सामरिक विद्रोह के लिये आपको प्रवृत्त करना यह वामपंथी/साम्यवादी/नक्षलवादी मानसिकता के लोगों का प्रयत्न रहा है. फिर जिन्हें ये गुलाम बतलाने इच्छुक हैं वो समाज अथवा व्यक्ती कितना भी कौशल्यविकसित, उच्चशिक्षाप्राप्त, एवं समृद्धी की ओर अग्रेसर क्यों न हो!
कल राष्ट्रीय लोकतंत्र मोर्चा (एन.डी.ए.) के राष्ट्रपतीपद के प्रत्याशी के नाम की घोषणा होते ही जो विरोधक, वामपंथी/साम्यवादी/नक्षलवादी एवं उनके समर्थक, तथा बिकाऊ मिडीया एवं उनके सोशल मिडीया पर पडे खच्चरों की निराशा से उत्पन्न बैचैनी और विषवमन दृग्गोचर हो रहा है वह इस बात पर है की अब सारे दुनिया को पता चल जाएगा कि संघ है क्या. यह बात कोई रोकॅट साईन्स तो नहीं थी कि भारतीय जनता पक्ष सर्वसहमती के हेतू एक दलित, उच्चशिक्षित, राजनीतीका अनुभवी, एवं संघ की विचारधारा रखने वाला कोई प्रत्याशी की खोज कर रही थी.
श्री रामनाथ कोविंदजी इन सारे निकषों में खरे उतरते हैं. वे दलित हैं, इतना ही नहीं वे गरीब किसान कुटुंब से आते हैं, दिल्ली उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में वे १६ वर्ष वकील थे, आय.ए.एस. परीक्षा उत्तीर्ण हैं, कुछ शैक्षणीक संस्थाओं के व्यवस्थापक भी रहें हैं, केवल इतना ही नहीं उन्हे संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत का प्रतिनिधित्व करने का एवं संयुक्त राष्ट्रसंघके आमसभा को संबोधित करनेका भी अनुभव प्राप्त है. संघी है तो पृथक बताना आवश्यक नहीं कि उन्हें सामाजिक कार्य में रुचि है अपितु अनुभव भी प्राप्त है. अब कुछ वर्षों से वे बिहार के राज्यपाल हैं. हां, यह वहीं है, जिन्होनें "अपेक्षित" के स्थान पर "उपेक्षित" कहने पर तेजस्वी यादव को पूरी शपथ पुन: पढने का आदेश दिया था.
परंतु उपरोक्त विरोधकों को यह बात पच नहीं रही की ऐसा व्यक्ती एक संघी है. हेतूपूर्वक इस शब्द का प्रयोग किया है क्योंकी बिकाऊ पत्रकारों को और संघ के अंधविरोधकों को इस शब्द का उपयोग करने के अभ्यस्त हैं. ये संघ के समर्थक ही नहीं अपितु संघ विरोधकों को भी ज्ञात है कि संघ मे किसी की जाति पूछी तक नहीं जाती, एवं नहीं साथ साथ संघ शाखा में जाने वाले लोगों मे जाती कोई महत्व नहीं रखती. इतना ही नहीं अनेक विजातीय संघ कार्यकर्ताओं के आपस में केवल रोटी ही नही बेटी व्यवहार भी हैं.
आज तक संघ को सातत्य से ब्राह्मणो एवं उच्च जातीयों के संगठन के रूप में संघकार्य से अपरिचित जनमानस के मन पर बिंबित करने में इन अंधविरोधकों नें कोई कसर नहीं छोडी थी. इसको पहली चोंट तब पहुंची जब श्री नरेन्द्र मोदी जो किसी तथाकथित उच्च जाती से संबंध नहीं रखते वे प्रधानमंत्री बने. परंतु उनका विरोध करने के हेतू विरोधकों के पास अन्य विषय थे. श्री रामनाथ कोविंदजी के विषय में ऐसा कुछ भी नहीं है.
विरोधीयों का दु:ख यह है कि इस बार राष्ट्रपतीपद के प्रत्याशी के दलित एवं संघी होने के कारण अब संघ एवं भारतीय जनता पक्ष के चारित्र्यहनन के लिये उनको जाती का आधार कैसे मिलेगा? मिडीयाकी जो तिलमिलाहट दृग्गोचर हो रही है, वह इस हेतू है की सालों पुराने संघ एवं भाजपा के दलितविरोधी होने की कहानियों की बाढ लाने मे वे इस बार पूरी तरह से असफल रहे हैं. अब यह बात विश्व के सामने बार बार आयेगी की भारतवर्ष का राष्ट्रपती दलित है एवं संघी भी है. अर्थात, यह बात विश्व को दृग्गोचर होगी की संघ जातीवादी तो है ही नही, अपितु संघ हर जाती के लोगों को राजनीती में उच्च स्थान प्राप्त कर देशसेवा करने हेतु समान अवसर प्राप्त कराता है.
मिडिया की इस छटपटाहट से हर राष्ट्रवादी भारतीय को गुदगुदी तो अवश्य हो रही है. मुझे भी होना आश्चर्य की बात नहीं. आप भी मजे लिजीये.
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
।। भारत माता की जय ।।
|| वंदे मातरम् ||
© मंदार दिलीप जोशी
जेष्ठ कृ. १०, शके १९३९ | योगिनी एकादशी