वीरमाता शब्द जब हम सुनते हैं, तो यहां महाराष्ट्र में हमें पहले तो शिवाजी महाराज की मां वीरमाता जीजाबाई का स्मरण होता है. लेकिन आजकल तो हमारी आकांक्षा घर में शिवाजी पैदा करने की तो रही नहीं. हम सोचते हैं कि शिवाजी पैदा तो हो, लेकिन वो मेरे पडोसी के घर पर हो तो अच्छा. हिंदू घर में बच्चे तो आजकल सिर्फ 'हम दो हमारे दो' के नारे हिसाब से चलते हैं. कईं घरों में तो 'हम दो हमारा एक' ही दिखाई देता है. आजकल तो वामींयों ने "हम औरत हैं तो क्या बच्चे जनना जरूरी है? नहीं चाहीये बच्चा!" यह गंदी सोच फैला रख्खी है. हम सोचते हैं जितने कम बच्चे हो उतना पालनपोषण अच्छा हो सकता है. अरे, थोडा भटक गये हम.
चलिये फिर शिवाजी की बात करते हैं. मुझे इस बात का पूरा यकीन है की अगर आज कहीं शिवाजी महाराज पैदा भी हो गये, तो उनको jingoist (युद्धखोर देशभक्त), हायपर नॅशनलिस्ट, और इस सूची मे ताजा दाखिल हुये अपशब्द कॉन्स्टिट्युशनल नॅशनलिझम से निश्चित रूप से गरियाया जायेगा. तो बहनजी लेकिन शिवाजी नहीं तो ना सही, कमसे कम सिपाही तो पैदा कर ही सकती हैं ना आप?
आईये ऐसी ही एक वीरमाता की बात करते हैं जिसने एक नहीं, अपितु दो वीर सिपाहीयों को जन्म दिया. उनके पहले बेटे का नाम है......है नहीं, था...सौरभ. हाल ही में एक समारोह में उन्होने जो बातें कहीं वह तो हम सोच भी नहीं सकते.
२००३ के आसपास सेना मे दाखिल हुए सौरभ नंदकुमार फराटे १७ दिसंबर २०१६ को काश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादीयों ने सेना के दल पर किये हमले में हुतात्मा हो गये. अपने परिवारसमेत दो महिनों की छुट्टी बिताकर और इस छुट्टी में अपने दोन जुडवा बेटीयों का जन्मदिन मनाकर फिर सेना में अपने नियुक्तिस्थान पर अक्तुबर में लौटे सौरभ की मृत्यू की खबर मिलते ही उसके परिवार तथा पूरे गांव मे दु:ख के घने बादल छा गये.
सकारात्मक खबरें देने वाले एक वेबसाईट भारतीयन्स डॉट कॉम का हाल ही मे एक अॅप निकला है. उसके उद्घाटन समारोह मे बात करते हुए सौरभ की मां ने कहा, कि अगर सब ऐसा सोचने लगे कि मेरा बेटा इंजिनिअर बनेगा, मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा तो फिर अपने देश की रक्षा के लिये कौन जायेगा? अपना बेटा देश के लिये खोया है तो क्या हुआ, मेरा दूसरा बेटा भी सेना में ही जायेगा. [यह बात ध्यान देने लायक है कि उनका दूसरा बेटा भी उसी जगह नियुक्त है जिस जगह सौरभ की नियुक्ती हुई थी.] और यदि मुझे अवसर मिला, तो मेरा यह ३ वर्ष की आयु का पोता जो है, उसे मैं सेना मे दाखिल करवाउंगी.
सेना में दाखिल दो बेटों में से एक का हुतात्मा हो जाना, दूसरे बेटे का भी उसी स्थान पर नियुक्ती होना जहां उसके भाई की नियुक्ती हुई थी, और यह कहना की अवसर मिलते ही पोते को भी सेना में देश के लिये लडने के लिये भेजूंगी, यह कोई साधारण बात नहीं है. हम में से कोई इतना ऊँचा सोच भी नहीं सकता जितनी ऊँचा सौरभ की माता की सोच है.
यह पढनेवाले लोगों में से कईं ऐसी होंगी जिनका अभी तक विवाह नहीं हुआ, या नयी नवेली दुल्हन है, या विवाह के पश्चात ज्यादा समय नहीं बीता है, या ऐसी भी होंगी जिनके बच्चे अभी तक स्कूल में पढ रहें है. और कुछ ऐसी भी होंगी जिनके परिवार और परिजनों में ऐये आयुगट की महिलाये होंगी. मै आपसे विनती करुंगा की आप इस विषय में सोचें और ऐसी महिलाओं को भी इस विषय में सोचने की विनती करें. अगर दूरस्थ गांव मे रहने वाले लोगों में पुलीस, सेना, एवं ऐसे ही सुरक्षा दलों मे दाखिल होने को लेकर ऐसी जागरूकता है, तो हम शहर वाले लोग जो अपने आप को ज्यादा परिपक्व समझेते हैं, क्यों नही सेना मे दाखिल होना एक विकल्प बना लेते हमारे बच्चों के लिये?
और हां, मुझे यह ज्ञात है कि केवल सेना में जाना ही देशभक्ति का प्रमाण नहीं है, परंतु यह एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसमें अपना योगदान देने के लिये हर नागरिक को सोचना चाहीये.
इससे पहले कि कोई यह पूछे कि भाईसाहब आप अपने बेटे को सेना मे भेजेंगे? तो उसका उत्तर है - हां. मेरा बेटा ४ साल कि आयु से ही सेना मे जाने की इच्छा रखता है, और आज वह ६.५ साल का है और उसका निर्णय बदला नहीं है. हां मृत्यू की उसे बुनियादी जानकारी है, जितनी एक ६-७ साल के बच्चे को होती है. लेकिन फिर भी उसने सेना में जाने के अपने लक्ष्य को छोडा नहीं है. अगर उसने बडा होकर उसकी इच्छा किसी कारणवश बदल गयी, तो हम उसमें दखल अंदाजी नहीं करेंगे. परंतु अगर उसने बडा होने पर यह कहा की मुझे सेना में ही अपना करिअर बनाना है, तो न मैं तो उसे रोकूंगा न उसकी मां, अपितु हम दोनो उसे प्रोत्साहित ही करेंगे. हां अगर बेटी जाना चाहे तो भी.
तो आप सोचिये, आप कैसी माता बनना पसंद करेंगी. "बेटा, बाहर मत खेलो कहीं लग गया तो, ये लो मोबाईल और व्हिडिओ गेम खेलो" ये वाली मां, या खेलकर आये बच्चे के जख्मों पर दवा लगाते हुएं उसके जुझारू वृत्ती का गौरव करने वाली माता बनेंगी?
आरंभ मे एक प्रश्न पूछा था आप से. घर घर से शिवाजी न निकले तो न सही, परंतु सैनिक तो पैदा कर ही सकती हैं ना आप? चलिये कम से कम सोचना तो शुरु किजीये!!
© मंदार दिलीप जोशी
चलिये फिर शिवाजी की बात करते हैं. मुझे इस बात का पूरा यकीन है की अगर आज कहीं शिवाजी महाराज पैदा भी हो गये, तो उनको jingoist (युद्धखोर देशभक्त), हायपर नॅशनलिस्ट, और इस सूची मे ताजा दाखिल हुये अपशब्द कॉन्स्टिट्युशनल नॅशनलिझम से निश्चित रूप से गरियाया जायेगा. तो बहनजी लेकिन शिवाजी नहीं तो ना सही, कमसे कम सिपाही तो पैदा कर ही सकती हैं ना आप?
आईये ऐसी ही एक वीरमाता की बात करते हैं जिसने एक नहीं, अपितु दो वीर सिपाहीयों को जन्म दिया. उनके पहले बेटे का नाम है......है नहीं, था...सौरभ. हाल ही में एक समारोह में उन्होने जो बातें कहीं वह तो हम सोच भी नहीं सकते.
२००३ के आसपास सेना मे दाखिल हुए सौरभ नंदकुमार फराटे १७ दिसंबर २०१६ को काश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादीयों ने सेना के दल पर किये हमले में हुतात्मा हो गये. अपने परिवारसमेत दो महिनों की छुट्टी बिताकर और इस छुट्टी में अपने दोन जुडवा बेटीयों का जन्मदिन मनाकर फिर सेना में अपने नियुक्तिस्थान पर अक्तुबर में लौटे सौरभ की मृत्यू की खबर मिलते ही उसके परिवार तथा पूरे गांव मे दु:ख के घने बादल छा गये.
सकारात्मक खबरें देने वाले एक वेबसाईट भारतीयन्स डॉट कॉम का हाल ही मे एक अॅप निकला है. उसके उद्घाटन समारोह मे बात करते हुए सौरभ की मां ने कहा, कि अगर सब ऐसा सोचने लगे कि मेरा बेटा इंजिनिअर बनेगा, मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा तो फिर अपने देश की रक्षा के लिये कौन जायेगा? अपना बेटा देश के लिये खोया है तो क्या हुआ, मेरा दूसरा बेटा भी सेना में ही जायेगा. [यह बात ध्यान देने लायक है कि उनका दूसरा बेटा भी उसी जगह नियुक्त है जिस जगह सौरभ की नियुक्ती हुई थी.] और यदि मुझे अवसर मिला, तो मेरा यह ३ वर्ष की आयु का पोता जो है, उसे मैं सेना मे दाखिल करवाउंगी.
सेना में दाखिल दो बेटों में से एक का हुतात्मा हो जाना, दूसरे बेटे का भी उसी स्थान पर नियुक्ती होना जहां उसके भाई की नियुक्ती हुई थी, और यह कहना की अवसर मिलते ही पोते को भी सेना में देश के लिये लडने के लिये भेजूंगी, यह कोई साधारण बात नहीं है. हम में से कोई इतना ऊँचा सोच भी नहीं सकता जितनी ऊँचा सौरभ की माता की सोच है.
यह पढनेवाले लोगों में से कईं ऐसी होंगी जिनका अभी तक विवाह नहीं हुआ, या नयी नवेली दुल्हन है, या विवाह के पश्चात ज्यादा समय नहीं बीता है, या ऐसी भी होंगी जिनके बच्चे अभी तक स्कूल में पढ रहें है. और कुछ ऐसी भी होंगी जिनके परिवार और परिजनों में ऐये आयुगट की महिलाये होंगी. मै आपसे विनती करुंगा की आप इस विषय में सोचें और ऐसी महिलाओं को भी इस विषय में सोचने की विनती करें. अगर दूरस्थ गांव मे रहने वाले लोगों में पुलीस, सेना, एवं ऐसे ही सुरक्षा दलों मे दाखिल होने को लेकर ऐसी जागरूकता है, तो हम शहर वाले लोग जो अपने आप को ज्यादा परिपक्व समझेते हैं, क्यों नही सेना मे दाखिल होना एक विकल्प बना लेते हमारे बच्चों के लिये?
और हां, मुझे यह ज्ञात है कि केवल सेना में जाना ही देशभक्ति का प्रमाण नहीं है, परंतु यह एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसमें अपना योगदान देने के लिये हर नागरिक को सोचना चाहीये.
इससे पहले कि कोई यह पूछे कि भाईसाहब आप अपने बेटे को सेना मे भेजेंगे? तो उसका उत्तर है - हां. मेरा बेटा ४ साल कि आयु से ही सेना मे जाने की इच्छा रखता है, और आज वह ६.५ साल का है और उसका निर्णय बदला नहीं है. हां मृत्यू की उसे बुनियादी जानकारी है, जितनी एक ६-७ साल के बच्चे को होती है. लेकिन फिर भी उसने सेना में जाने के अपने लक्ष्य को छोडा नहीं है. अगर उसने बडा होकर उसकी इच्छा किसी कारणवश बदल गयी, तो हम उसमें दखल अंदाजी नहीं करेंगे. परंतु अगर उसने बडा होने पर यह कहा की मुझे सेना में ही अपना करिअर बनाना है, तो न मैं तो उसे रोकूंगा न उसकी मां, अपितु हम दोनो उसे प्रोत्साहित ही करेंगे. हां अगर बेटी जाना चाहे तो भी.
तो आप सोचिये, आप कैसी माता बनना पसंद करेंगी. "बेटा, बाहर मत खेलो कहीं लग गया तो, ये लो मोबाईल और व्हिडिओ गेम खेलो" ये वाली मां, या खेलकर आये बच्चे के जख्मों पर दवा लगाते हुएं उसके जुझारू वृत्ती का गौरव करने वाली माता बनेंगी?
आरंभ मे एक प्रश्न पूछा था आप से. घर घर से शिवाजी न निकले तो न सही, परंतु सैनिक तो पैदा कर ही सकती हैं ना आप? चलिये कम से कम सोचना तो शुरु किजीये!!
© मंदार दिलीप जोशी