यह चुटकुला अर्थात जोक फिर एक बार व्हॉट्सॅप पर आया:
धरम पिता - असली पिता नहीं
धरम माता - असली माता नहीं
धरम पुत्र - असली पुत्र नहीं
धरम भाई - असली भाई नहीं
धरम बहन - असली बहन नहीं
लेकिन ऐसी जबरदस्त गलती हुई कैसे?
धरम पत्नी मतलब असली पत्नी.
पता करो शास्त्रों में कहां गलती हुई!!!
😜😝😂😂😷😷
गलती शास्त्रों में नहीं, इस जोक को लिखने वाले के दिमाग में हुई है. जरा तर्क लगाएंगे तो इसमें क्या गलती है ये आप को जल्द समझ आ जाएगा.
माता, पिता, पुत्र, बहन, भाई ये सब खून के रिश्ते होते है. इसी लिये आप जब किसी परिचित को इनमें से किसी रिश्ते की तरह मानने लगते हैं तो उसे धर्म का रिश्ता कहा जाता है, क्योंकी आपने उस इन्सान के साथ उस रिश्ते का धर्म की तरह निष्ठा से पालन करना एवं निभाना चाहते हैं.
धर्म की परिभाषा देते हुए भीष्म पितामह महाभारत में कहते हैं— धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः। यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।। अर्थात्—'जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे ''धर्म'' कहते हैं। धर्म प्रजा को धारण करता है। जिसमें प्रजा को धारण कर एकसूत्र में बाँध देने की सामर्थ्य है, वह निश्चय ही धर्म है।'
कोई स्त्री आपकी पत्नी बनके जन्म नहीं लेती, आप इस नाते को धारण करते हैं. सामान्यतः आपकी पत्नी से आपका कोई खून का रिश्ता नहीं होता. इसी कारणवश जिस स्त्री से आपकी शादी होती है उसे धर्मपत्नी इसीलिये कहा जाता है की आप ने कोई खून का रिश्ता न होते जन्म का बंधन स्वीकार करते हुए उसका शारीरिक एवं मानसिक तौर पर निष्ठा के साथ जीवनभर साथ देने का निर्णय लिया होता है. अर्थात, आपके जिस स्त्री को पत्नी का दर्जा दिया है उसका इस प्रकार साथ देना आपका दायित्व होता है, अर्थात धर्म होता है. जैसे की आपने किसी को अपना पिता या बहन मानकर उस रिश्ते को निभाने का वचन दिया हुआ होता है.
इसी लिये कहा था, गलती शास्त्रों में नहीं, इस जोक को लिखने वाले के दिमाग में हुई है.
हर बात पर राम, सीता, शास्त्र, वेद, पुराण इनपर चुटकुले सुनाना बंद किजीये और ऐसे चुटकुले आयें तो उनको आगे ढकेलना भी.
© मंदार दिलीप जोशी
फाल्गुन कृ. ४, शके १९३९
धरम पिता - असली पिता नहीं
धरम माता - असली माता नहीं
धरम पुत्र - असली पुत्र नहीं
धरम भाई - असली भाई नहीं
धरम बहन - असली बहन नहीं
लेकिन ऐसी जबरदस्त गलती हुई कैसे?
धरम पत्नी मतलब असली पत्नी.
पता करो शास्त्रों में कहां गलती हुई!!!
😜😝😂😂😷😷
गलती शास्त्रों में नहीं, इस जोक को लिखने वाले के दिमाग में हुई है. जरा तर्क लगाएंगे तो इसमें क्या गलती है ये आप को जल्द समझ आ जाएगा.
माता, पिता, पुत्र, बहन, भाई ये सब खून के रिश्ते होते है. इसी लिये आप जब किसी परिचित को इनमें से किसी रिश्ते की तरह मानने लगते हैं तो उसे धर्म का रिश्ता कहा जाता है, क्योंकी आपने उस इन्सान के साथ उस रिश्ते का धर्म की तरह निष्ठा से पालन करना एवं निभाना चाहते हैं.
धर्म की परिभाषा देते हुए भीष्म पितामह महाभारत में कहते हैं— धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः। यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।। अर्थात्—'जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे ''धर्म'' कहते हैं। धर्म प्रजा को धारण करता है। जिसमें प्रजा को धारण कर एकसूत्र में बाँध देने की सामर्थ्य है, वह निश्चय ही धर्म है।'
कोई स्त्री आपकी पत्नी बनके जन्म नहीं लेती, आप इस नाते को धारण करते हैं. सामान्यतः आपकी पत्नी से आपका कोई खून का रिश्ता नहीं होता. इसी कारणवश जिस स्त्री से आपकी शादी होती है उसे धर्मपत्नी इसीलिये कहा जाता है की आप ने कोई खून का रिश्ता न होते जन्म का बंधन स्वीकार करते हुए उसका शारीरिक एवं मानसिक तौर पर निष्ठा के साथ जीवनभर साथ देने का निर्णय लिया होता है. अर्थात, आपके जिस स्त्री को पत्नी का दर्जा दिया है उसका इस प्रकार साथ देना आपका दायित्व होता है, अर्थात धर्म होता है. जैसे की आपने किसी को अपना पिता या बहन मानकर उस रिश्ते को निभाने का वचन दिया हुआ होता है.
इसी लिये कहा था, गलती शास्त्रों में नहीं, इस जोक को लिखने वाले के दिमाग में हुई है.
हर बात पर राम, सीता, शास्त्र, वेद, पुराण इनपर चुटकुले सुनाना बंद किजीये और ऐसे चुटकुले आयें तो उनको आगे ढकेलना भी.
© मंदार दिलीप जोशी
फाल्गुन कृ. ४, शके १९३९