कई दिनों से इस विषय पर लिखना चाहता था, लेकिन अब रक्षाबंधन का त्यौहार करीब आ रहा है, और इस विषयपर नकारात्मक पोस्ट्स का सैलाब-सा आएगा, इसलिए लिखना आवश्यक मानता हूँ! गत कई दिनों से रावण की बड़ाई, और राम पर दोषारोपण करनेवाला एक व्होट्सऐप सन्देश चल रहा है, और कई लोगोंके पास उस में उठाए मुद्दोंपर कोई जवाब नहीं है. उस सन्देश में एक लडकी अपनी माँ से कहती है, कि उसे रावण जैसा भाई चाहिए, राम जैसा नहीं! राम ने सीता का त्याग करना, और रावण का अपनी बहन शूर्पनखा के लिए युद्ध कर अपने प्राणोंका बलिदान देना, इतना ही नहीं, सीता हरण के पश्चात् उसे स्पर्श तक नहीं करना, इन सब बातोंको इस के कारण के स्वरुप बताती है. माँ यह सुन कर अवाक रह जाती है.
अब हम इसमें से एक-एक मुद्दे की बात करेंगे. पहला मुद्दा सीता के त्याग का.
मूलत: सीता के त्याग का प्रसंग ‘उत्तर रामायण’ (उत्तर काण्ड) में पाया जाता है. ‘उत्तर’ इस संस्कृत शब्द का अर्थ होता है ‘के पश्चात’, जैसे आयुर्वेद में ‘उत्तरतंत्र’ पाया जाता है. यह उत्तरतंत्र मूल संहिता में किसी और लेखक ने जोड़ा होता है. संक्षेप में कहे, तो मूल रामायण की रचना के पश्चात उत्तर रामायण उस में जोड़ दिया गया है, और महर्षी वाल्मीकि उस के रचयिता है ही नहीं! उनका लिखा रामायण युद्धकाण्ड पर समाप्त होता है. रामायण की फलश्रुती युद्धकाण्ड के अंत में पायी जाती है, यह बात भी इसका एक प्रमाण है. किसी भी स्तोत्र के अंत में फलश्रुती होती है. फलश्रुती के समाप्ति पर रचना समाप्त होती है, यह सादा सा नियम यहाँ भी लागू होता है.
जो बात मूल रामायण में है ही नहीं, उसे बेचारे राम के माथे मढ़ने का काम यह ‘उंगली करनेवाले’ लोग करते है. लेकिन ऐसा करते हुए सीतामाता के धरणीप्रवेश के बाद प्रभु रामचन्द्रजी ने किए विलाप का जो वर्णन उत्तर रामायण में आता है, उसे वे आसानी से भुला देते है. पूरी रामायण पढ़े बगैर खुदको अक्लमंद साबित करने के लिए कपोलकल्पित बातोंकी जुगाली करने का काम करते है ये विद्वान!
कुछ अतिबुद्धिमान लोग कहेंगे, कि लव और कुश का क्या? क्या उनका जन्म हुआ ही नहीं? और उनका जन्म वाल्मीकी आश्रम में हुआ था, उस बात का क्या?
उसका जवाब यह, कि राम और सीता अयोध्या लौट आने के बाद उनके संतान नहीं हो सकती क्या? कैसे कह सकते है, कि लव और कुश का जन्म अयोध्या में नहीं हुआ था? उनका कोई जन्म प्रमाणपत्र है क्या?
फर्ज कीजिए, सीता को वन में भेज दिया गया था. क्या हम उसका कारण सिर्फ यह दे सकते है, कि ‘राम ने सीता का त्याग किया’? क्या कुछ दूसरा कारण नहीं हो सकता? धार्मिक मामलों में राजा के सलाहगार, कभी कभार तो डांट तक देनेवाले ऋषिमुनी सामान्य जनता के बनिस्पत निश्चय ही कहीं ज्यादा कट्टर होंगे. इसलिए, इस बात की संभावना लगभग न के बराबर है, कि सीता को वाल्मीकि आश्रम भेजने का निर्णय किसी की सलाह के बगैर लिया गया हो. आज के सन्दर्भों में सोचा जाए, तो उसे गर्भावस्था में अधिक सात्त्विक, निसर्गरम्य वातावरण में दिन बिताने के लिए भेजा जाना ही तर्कनिष्ठ लगता है. जिस सीता को चरित्रहीन होने के शक में त्यागा गया होता, उसे आम लोगोंसे ज्यादा ‘सनातनी’ ऋषिमुनि, साधूसंत अपने आश्रम में आराम से कैसे रहने देते? इस बारे में न तो उत्तर रामायण के रचनाकारोंने सोचा, न आज राम पर तोहमत लगाने वाले नकलची सोच रहे है.
अब अगर-मगर वाली भाषा थोड़ी परे रखते है. स्वयं सीतामाता को इच्छा हो रही थी कि उनके बच्चोंका जन्म ऋषि-आश्रम में हो, ऐसा रामायण में ही लिखा है! अब कहें!!!
अब रावण की ओर रुख करते है. रावण एक वेदशास्त्रसंपन्न विद्वान था, वीणावादन में निपुण कलाकार था, यह बात सच है. लेकिन सिर्फ यही बात उसे महान नहीं बनाती. याकूब मेमन एक चार्टर्ड अकाउंटेंट था, ओसामा बिन लादेन सिव्हिल इंजिनियर था. कई और आतंकी उच्चशिक्षित थे, और कई अन्य जीवित आतंकी भी है. उनकी शिक्षा का स्तर उन्हें महान नहीं बनाता. हम आज भी समाज में देख सकते है कि लौकिक शिक्षा सभ्यता का मापदंड नहीं हो सकती.
रावण महापापी था, लंपट था. उसकी नजर में स्त्री केवल भोगविलास की वस्तु थी. रावण ने सीता को न छूने के पीछे भी उसका एक पापकर्म छुपा हुआ है. एक दिन रावण देवलोक पर आक्रमण करने जा रहा था, और कैलास पर्वत पर उसके सैन्य ने छावनी बनाई हुई थी. उस समय उसने स्वर्गलोक की अप्सरा रम्भा को वहां से गुजरता देखा. उसपर अनुरक्त रावणने उस के साथ रत होने की इच्छा प्रकट की. (व्हॉट्सअॅरप नकलची लोगों के लिए आसान शब्दों में:- उसके साथ सोने की इच्छा प्रकट की). लेकिन रम्भा ने उसे नकारते हुए कहा, “हे रावण महाराज, मैं आप के बन्धु कुबेर महाराज के पुत्र नलकुबेर से प्यार करती हूँ, और उसे मिलने जा रही हूँ. तस्मात् मैं आप की बहू लगती हूँ. इसलिए, ऐसा व्यवहार आप को शोभा नहीं देता!”
रम्भा के इस बात का रावण पर कुछ भी असर नहीं हुआ. कहते है, कि कामातुराणां न भयं न लज्जा! रावण बोला – “हे रम्भे, तुम स्वर्गलोक की अप्सरा हो. अप्सराएं किसी एक पुरुष से शादी कर के बस नहीं सकती. तुम किसी एक की हो ही नहीं सकती!” ऐसी दलील दे कर रावण ने रम्भा का बलात्कार किया. कुबेरपुत्र नलकुबेर को जब इस बात का पता चला, तब क्रोधित हो कर उसने रावण को शाप दिया, कि तुमने रम्भा की इच्छा के बगैर उस का बलात्कार किया है, इसलिए आगे से तुम किसी भी स्त्री से उस की अनुमति के बगैर सम्बन्ध नहीं बना पाओगे. अगर तुमने ऐसा किया, तो तुम्हारे मस्तक के सात टुकडे हो कर तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी.
इसी कारणवश सीता को प्रदीर्घ काल तक कारावास में रखने के बावजूद रावण उसे स्पर्श तक नहीं कर सका. इस बात में उसकी सात्त्विकता नहीं, बल्कि उसकी मजबूरी नजर आती है. ठीक वैसे ही, जैसे आप सिग्नल पर पुलिसवाला तैनात देख कर चुपचाप रुक, अपनी बाइक जेब्रा क्रासिंग के पीछे ले जा कर भोली सूरत बना लेते हो!
इसीलिए रावण सीता को सिर्फ जान लेने की धमकी दे सका. अनगिनत मिन्नतों के बावजूद सीता को जब वश कर न सका, तब अभिशप्त रावण ने सीता को एक साल की मोहलत दी, और कहा, की एक साल के भीतर अगर वह रावण से सम्बन्ध बनाने के लिए राज़ी न हुई तो वह उसकी हत्या कर देगा. जब हनुमान सीता से मिलने लंका गए, तब उन्होंने रावण ने सीता से “अगर तुम मुझसे अपनी मर्जी से सम्बन्ध बनाने के राज़ी न हुई तो दो महीनों के बाद मैं तुम्हारी हत्या कर दूँगा!” ऐसा कहते सुना था.
रावण सिर्फ चाटुकारिता भरी बातें सुनने का आदि था. बड़े-बुजुर्ग और हितचिंतकोंसे सलाह लेना वह हत्थक समझता था. इसलिए उसने सीतामाता को वापस भेजने और राम से शत्रुता न मोल लेने की सलाह देनेवाले अपने सगे भई बिभीषण को उसने देशनिकाला दे दिया. मंत्री शुक और खुद के दादा माल्यवान, दोनों की सही, लेकिन पसंद न आनेवाली सलाह ठुकरा कर उनको भी दूर कर दिया.
इसके ठीक विपरीत राम ने पिता के दिए वर का सम्मान करते हुए वनवास जाना पसंद किया. इतना ही नहीं, वापस बुलाने के लिए आए भाई भरत को उन्होंने राज्य की धुरा सौंप वापस भेज दिया था.
ऐसा कहा जाता कि बहन शूर्पनखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण ने राम से युद्ध किया. लेकिन उसी बहन के साथ रावण के बर्ताव पर कोई ध्यान नहीं देता. शूर्पनखा का वास्तविक नाम मीनाक्षी था. जवान होने पर उसने अपनी मर्जी से, रावण की अनुमति के बगैर दुष्टबुद्धि नाम के असुर के साथ विवाह तय कर लिया. दुष्टबुद्धि महत्वाकांक्षी था. रावण को ऐसा डर था कि इस शादी के पीछे दुष्टबुद्धि की मंशा रावण का राज्य हथियाने की थी. इसलिए रावण इस विवाह के खिलाफ था. लेकिन जब पत्नी मंदोदरी ने उस से प्रार्थना की, कि बहन की इच्छा मान ली जाए, रावण पसीज गया, और विवाह की अनुमति दे दी. लेकिन रावण के मन में गुस्सा अन्दर ही अन्दर सुलग रहा था. इसी के चलते बाद में उसने दुष्टबुद्धि पर हमला कर उसे मार डाला. इस बात को हम आज के समय में क्या कहते है? हां, सही पहचाना हॉनर किलिंग! क्या बहन के पति की हत्या करने वाला रावण आप को महात्मा और आदर्श भई प्रतीत होता है?
ज़ाहिर है कि इस बात से शूर्पनखा बड़ी व्यथित हो उठी. प्रतिशोध की भावना उसके मन में धधक उठी. अपने पति के हत्या के प्रतिशोध के लिए वह तड़पने लगी. ऐसे में इधर-उधर भटकते हुए उसे राम और लक्ष्मण इन रघुकुलके दो वीर पुरुष दिखाई दिए, और उस के मन में पनपती प्रतिशोध की भावना ने एक षडयंत्र पैदा हुआ. पहले राम और बादमें लक्ष्मण के प्रति अनुराग दिखाने वाली शूर्पनखा जब सीता पर झपटी, लक्ष्मण ने उसे रोक उस के नासिका और कर्ण छेद दिए. इस बात की शिकायत उसने पहले उसके भाई राक्षस खर से की. खर और दूषण दक्षिण भारत में रावण के राज्य की रखवाली करते थे. इन दो राक्षसों ने राम और लक्ष्मण पर हमला किया, और राम-लक्ष्मण ने उन का बड़ी आसानी से पारिपत्य किया. रावण का राज्य थोड़ा ही क्यों न हो, कुतरा गया, इस विचार से हर्षित शूर्पनखा रावण के सम्मुख राम और लक्ष्मण की शिकायत ले गई. अब रावण प्रचंड क्रोधित हुआ. क्यों कि राम-लक्ष्मण ने उसके राज्य में सेंध लगाकर उसकी बहन को विरूप किया, और उसके दो भाईयोंकी ह्त्या की थी. अब तक बहन के सम्मान के बारे में पूर्णतया उदासीन रावण अपने राज्य पर हमले की बात से आगबबूला हो गया, और प्रतिशोध स्वरुप उसने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया. आगे का घटनाक्रम सर्वविदित है, मैं उसे दोहराना नहीं चाहूंगा!
रावण की हवस के बारे में और एक कथा है. एक दिन हिमालय में घूम रही रावण को ब्रह्मर्षी कुशध्वज की कन्या वेदवती दिखाई दी. स्वभाव से ही लंपट रावण का उस पर लट्टू हो जाना कोई आश्चर्य की बात न थी. उसे देखते ही रावण ने उस से बात करने की कोशिश की, और पूछा, कि वह अबतक अविवाहित क्यों थी. उसने रावण को बताया कि उसके पिता की इच्छा उसका विवाह भगवान विष्णु से करने की थी. इसका पता चलते ही वेदवती की चाहत पाने के इच्छुक एक दैत्यराज ने उनकी हत्या कर दी. पति की हत्या में ग़मगीन उस की माँ ने भी अपनी जान दे दी. तब से अपने पिता की इच्छा की पूर्ति के लिए वह श्री विष्णु की आराधना कर रही थी. अनाथ और जवान कन्या देख कर रावण का मन डोल गया और उस ने उससे उसे अपनाने की प्रार्थना की. लेकिन वेदवती का निश्चय अटल था. उसने रावण को मना कर दिया. रावण अपनी फितरत के अनुसार उसके बाल पकड़ कर उस पर जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा. वेदवती ने अपने बाल काट कर खुद को छुड़ा लिया और अग्निप्रवेश कर जान दे दी. मरते हुए उसने रावण को श्राप दिया कि “मैं तो अब मर जाऊंगी, लेकिन मैं फिर से जन्म ले कर तुम्हारे मृत्यु का कारण बनूँगी”!
इसके आगे की कहानी कई पर्यायों में है. एक में अग्निप्रवेश कर चुकी वेदवती को अग्निदेव बचा लेते है, और उसे अपनी पुत्री की तरह पालते है. बाद में जब रावण सीता का हरण कर ले जा रहा होता है, तब वे वेदवती और सीता को आपस में बदल देते है, और सीता को अपने पास रख लेते है. बाद में जब सीता राम को यह बात बता कर वेदवती का पत्नी के रूप में स्वीकार करने की बात कहती है, तो राम उसे एक पत्नीव्रत का हवाला दे कर मना कर देते है. तब वेदवती पुन: अग्निप्रवेश करती है. आगे पद्मावती के नाम से जन्म लेने पर वेदवती से विवाह कर श्रीनिवास के रूप में श्रीविष्णु वेदवती के पिता की इच्छा का आदर करते है.
ऐसा भी कहा जाता है कि वेदवती ही सीता के रूप में जन्म ले कर रावण के मृत्यु का कारण बनी. ऐसा है, कि मैं तो खुद उस काल में उपस्थित नहीं था. लेकिन राम पर मनगढ़ंत आरोप करनेवाले हिन्दू द्वेषी भी वहाँ थे नहीं, और उनके अनर्गल संदेशोंको सच मान नक़लचेप करनेवाले बेअक्ल लोग भी तो नहीं थे.
अत: सगी बहन के पति की शक के बिनाह पर हत्या करने वाला और दिखाई पड़ने वाली हर सुन्दर स्त्री का बलात्कार, या वैसी कोशिश करनेवाला रावण आजके बहन का आदर्श कैसे हो सकता है, यह बात मेरे समझ के परे है!
रावण की अगर तुलना करनी ही है, तो वह आज के बिल क्लिंटन, टायगर वुड्स या वैसे ही लंपट बलात्कारी से हो सकती है. सत्ता के लिए, कुर्सी बचाकर रखने के लिए जी-जान की कोशिश करने वाले आधुनिक स्वयंघोषित कमीने राजनेताओं से हो सकती है. अनेक प्रलोभनों का सामना कर आखिर तक एक-पत्नि-व्रत का पालन करने वाले राम से तो हरगिज नहीं हो सकती.
पाठकों, आप एक बड़े षडयंत्र का शिकार हो रहे है. कई तरीकोंसे हमारे मानसपटल पर यह अंकित करने की कोशिश हो रही है कि हर भारतीय चीज बेकार है. हर त्यौहार के बारे में वह त्यौहार कैसे प्रदूषण फैलाता है, कैसे प्राकृतिक संसाधनों का नाश करता है, ऐसी बाते फैलानेवाले सन्देश सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे है. भारतीयोंके श्रद्धास्थान राम, कृष्ण, इनपर छींटाकशी के प्रयास होते है, इतना ही नहीं, डाक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे ऋषितुल्य व्यक्तित्व को “Bomb Daddy” और संघ का लड़ाकू अजेंडा आगे ले जाने वाले भारतीय पुरुषसत्ताक पद्धति का पुरस्कर्ता कहा जाना वगैरह इसमें शामिल है. अगर यकीन न हो तो राजदीप सरदेसाई की पत्नि सागरिका घोष के लेख आन्तरजाल पर खोज कर देखें.
दुर्भाग्यवश हम भारतीयों की एक बुरी आदत है – आत्मक्लेश, आत्मपीडा! इस बारे में डाक्टर सुबोध नाइक का लिखा हुआ एक परिच्छेद उद्धृत करना चाहता हूँ: “खुद में अपना परीक्षक होना अपनी प्रगति के लिए बड़ी अच्छी बात है. लेकिन आप के अन्दर का यह समीक्षक कब आप का मूल्यमापन करने से आप का अवमूल्यन करने पर उतरता है, इसका आप को कई बार पता ही नहीं चलता. खुद के हर बात पर आप खुद को सिर्फ गरियाते है. “मेरे पास कुछ भी मूल्यवान नहीं है, मैं कभी अच्छा था ही नहीं” ऐसा आप का विश्वास बनता जाता है. खुद को गरियाए बगैर आप को अच्छा ही नहीं लगता. एक तरह से आप आत्मक्लेशक (masochist) बनते हो, और इसी में आप खप जाते हो. तब साक्षात ब्रह्मदेव भी आप की सहायता नहीं कर सकते.
जैसे यह निजी स्तर पर होता है, वैसे ही राष्ट्रीय स्तर पर भे होता है.”
प्रभु रामचंद्र साक्षात मर्यादा पुरुषोत्तम थे. उनके पैर के नाखून तक की हमारी औकात नहीं है. इसलिए इस तरह की आत्मक्लेश सहाय्यक अलगाववादी ताकतोंको प्रोत्साहन न दें. राम की आड़ में हिन्दुओं के श्रद्धास्थानों पर निशाना लगाने वाली ताकतों को बल न दें!
जाते जाते बता दूँ, शम्बूक वध की कहानी भी मूल रामायण में नहीं है!
संदर्भः
१) वाल्मीकी रामायण
२) **वैद्य परीक्षित शेवडे, डोंबिवली
३) डॉ सुबोध नाई़क
४) रामायण संबंधीत अनेक स्त्रोत
मूल लेखकः श्री मंदार दिलीप जोशी
हिंदी भाषांतर/रूपांतरः श्री कृष्णा धारासुरकर
https://goo.gl/L6L32z
अब हम इसमें से एक-एक मुद्दे की बात करेंगे. पहला मुद्दा सीता के त्याग का.
मूलत: सीता के त्याग का प्रसंग ‘उत्तर रामायण’ (उत्तर काण्ड) में पाया जाता है. ‘उत्तर’ इस संस्कृत शब्द का अर्थ होता है ‘के पश्चात’, जैसे आयुर्वेद में ‘उत्तरतंत्र’ पाया जाता है. यह उत्तरतंत्र मूल संहिता में किसी और लेखक ने जोड़ा होता है. संक्षेप में कहे, तो मूल रामायण की रचना के पश्चात उत्तर रामायण उस में जोड़ दिया गया है, और महर्षी वाल्मीकि उस के रचयिता है ही नहीं! उनका लिखा रामायण युद्धकाण्ड पर समाप्त होता है. रामायण की फलश्रुती युद्धकाण्ड के अंत में पायी जाती है, यह बात भी इसका एक प्रमाण है. किसी भी स्तोत्र के अंत में फलश्रुती होती है. फलश्रुती के समाप्ति पर रचना समाप्त होती है, यह सादा सा नियम यहाँ भी लागू होता है.
जो बात मूल रामायण में है ही नहीं, उसे बेचारे राम के माथे मढ़ने का काम यह ‘उंगली करनेवाले’ लोग करते है. लेकिन ऐसा करते हुए सीतामाता के धरणीप्रवेश के बाद प्रभु रामचन्द्रजी ने किए विलाप का जो वर्णन उत्तर रामायण में आता है, उसे वे आसानी से भुला देते है. पूरी रामायण पढ़े बगैर खुदको अक्लमंद साबित करने के लिए कपोलकल्पित बातोंकी जुगाली करने का काम करते है ये विद्वान!
कुछ अतिबुद्धिमान लोग कहेंगे, कि लव और कुश का क्या? क्या उनका जन्म हुआ ही नहीं? और उनका जन्म वाल्मीकी आश्रम में हुआ था, उस बात का क्या?
उसका जवाब यह, कि राम और सीता अयोध्या लौट आने के बाद उनके संतान नहीं हो सकती क्या? कैसे कह सकते है, कि लव और कुश का जन्म अयोध्या में नहीं हुआ था? उनका कोई जन्म प्रमाणपत्र है क्या?
फर्ज कीजिए, सीता को वन में भेज दिया गया था. क्या हम उसका कारण सिर्फ यह दे सकते है, कि ‘राम ने सीता का त्याग किया’? क्या कुछ दूसरा कारण नहीं हो सकता? धार्मिक मामलों में राजा के सलाहगार, कभी कभार तो डांट तक देनेवाले ऋषिमुनी सामान्य जनता के बनिस्पत निश्चय ही कहीं ज्यादा कट्टर होंगे. इसलिए, इस बात की संभावना लगभग न के बराबर है, कि सीता को वाल्मीकि आश्रम भेजने का निर्णय किसी की सलाह के बगैर लिया गया हो. आज के सन्दर्भों में सोचा जाए, तो उसे गर्भावस्था में अधिक सात्त्विक, निसर्गरम्य वातावरण में दिन बिताने के लिए भेजा जाना ही तर्कनिष्ठ लगता है. जिस सीता को चरित्रहीन होने के शक में त्यागा गया होता, उसे आम लोगोंसे ज्यादा ‘सनातनी’ ऋषिमुनि, साधूसंत अपने आश्रम में आराम से कैसे रहने देते? इस बारे में न तो उत्तर रामायण के रचनाकारोंने सोचा, न आज राम पर तोहमत लगाने वाले नकलची सोच रहे है.
अब अगर-मगर वाली भाषा थोड़ी परे रखते है. स्वयं सीतामाता को इच्छा हो रही थी कि उनके बच्चोंका जन्म ऋषि-आश्रम में हो, ऐसा रामायण में ही लिखा है! अब कहें!!!
अब रावण की ओर रुख करते है. रावण एक वेदशास्त्रसंपन्न विद्वान था, वीणावादन में निपुण कलाकार था, यह बात सच है. लेकिन सिर्फ यही बात उसे महान नहीं बनाती. याकूब मेमन एक चार्टर्ड अकाउंटेंट था, ओसामा बिन लादेन सिव्हिल इंजिनियर था. कई और आतंकी उच्चशिक्षित थे, और कई अन्य जीवित आतंकी भी है. उनकी शिक्षा का स्तर उन्हें महान नहीं बनाता. हम आज भी समाज में देख सकते है कि लौकिक शिक्षा सभ्यता का मापदंड नहीं हो सकती.
रावण महापापी था, लंपट था. उसकी नजर में स्त्री केवल भोगविलास की वस्तु थी. रावण ने सीता को न छूने के पीछे भी उसका एक पापकर्म छुपा हुआ है. एक दिन रावण देवलोक पर आक्रमण करने जा रहा था, और कैलास पर्वत पर उसके सैन्य ने छावनी बनाई हुई थी. उस समय उसने स्वर्गलोक की अप्सरा रम्भा को वहां से गुजरता देखा. उसपर अनुरक्त रावणने उस के साथ रत होने की इच्छा प्रकट की. (व्हॉट्सअॅरप नकलची लोगों के लिए आसान शब्दों में:- उसके साथ सोने की इच्छा प्रकट की). लेकिन रम्भा ने उसे नकारते हुए कहा, “हे रावण महाराज, मैं आप के बन्धु कुबेर महाराज के पुत्र नलकुबेर से प्यार करती हूँ, और उसे मिलने जा रही हूँ. तस्मात् मैं आप की बहू लगती हूँ. इसलिए, ऐसा व्यवहार आप को शोभा नहीं देता!”
रम्भा के इस बात का रावण पर कुछ भी असर नहीं हुआ. कहते है, कि कामातुराणां न भयं न लज्जा! रावण बोला – “हे रम्भे, तुम स्वर्गलोक की अप्सरा हो. अप्सराएं किसी एक पुरुष से शादी कर के बस नहीं सकती. तुम किसी एक की हो ही नहीं सकती!” ऐसी दलील दे कर रावण ने रम्भा का बलात्कार किया. कुबेरपुत्र नलकुबेर को जब इस बात का पता चला, तब क्रोधित हो कर उसने रावण को शाप दिया, कि तुमने रम्भा की इच्छा के बगैर उस का बलात्कार किया है, इसलिए आगे से तुम किसी भी स्त्री से उस की अनुमति के बगैर सम्बन्ध नहीं बना पाओगे. अगर तुमने ऐसा किया, तो तुम्हारे मस्तक के सात टुकडे हो कर तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी.
इसी कारणवश सीता को प्रदीर्घ काल तक कारावास में रखने के बावजूद रावण उसे स्पर्श तक नहीं कर सका. इस बात में उसकी सात्त्विकता नहीं, बल्कि उसकी मजबूरी नजर आती है. ठीक वैसे ही, जैसे आप सिग्नल पर पुलिसवाला तैनात देख कर चुपचाप रुक, अपनी बाइक जेब्रा क्रासिंग के पीछे ले जा कर भोली सूरत बना लेते हो!
इसीलिए रावण सीता को सिर्फ जान लेने की धमकी दे सका. अनगिनत मिन्नतों के बावजूद सीता को जब वश कर न सका, तब अभिशप्त रावण ने सीता को एक साल की मोहलत दी, और कहा, की एक साल के भीतर अगर वह रावण से सम्बन्ध बनाने के लिए राज़ी न हुई तो वह उसकी हत्या कर देगा. जब हनुमान सीता से मिलने लंका गए, तब उन्होंने रावण ने सीता से “अगर तुम मुझसे अपनी मर्जी से सम्बन्ध बनाने के राज़ी न हुई तो दो महीनों के बाद मैं तुम्हारी हत्या कर दूँगा!” ऐसा कहते सुना था.
रावण सिर्फ चाटुकारिता भरी बातें सुनने का आदि था. बड़े-बुजुर्ग और हितचिंतकोंसे सलाह लेना वह हत्थक समझता था. इसलिए उसने सीतामाता को वापस भेजने और राम से शत्रुता न मोल लेने की सलाह देनेवाले अपने सगे भई बिभीषण को उसने देशनिकाला दे दिया. मंत्री शुक और खुद के दादा माल्यवान, दोनों की सही, लेकिन पसंद न आनेवाली सलाह ठुकरा कर उनको भी दूर कर दिया.
इसके ठीक विपरीत राम ने पिता के दिए वर का सम्मान करते हुए वनवास जाना पसंद किया. इतना ही नहीं, वापस बुलाने के लिए आए भाई भरत को उन्होंने राज्य की धुरा सौंप वापस भेज दिया था.
ऐसा कहा जाता कि बहन शूर्पनखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण ने राम से युद्ध किया. लेकिन उसी बहन के साथ रावण के बर्ताव पर कोई ध्यान नहीं देता. शूर्पनखा का वास्तविक नाम मीनाक्षी था. जवान होने पर उसने अपनी मर्जी से, रावण की अनुमति के बगैर दुष्टबुद्धि नाम के असुर के साथ विवाह तय कर लिया. दुष्टबुद्धि महत्वाकांक्षी था. रावण को ऐसा डर था कि इस शादी के पीछे दुष्टबुद्धि की मंशा रावण का राज्य हथियाने की थी. इसलिए रावण इस विवाह के खिलाफ था. लेकिन जब पत्नी मंदोदरी ने उस से प्रार्थना की, कि बहन की इच्छा मान ली जाए, रावण पसीज गया, और विवाह की अनुमति दे दी. लेकिन रावण के मन में गुस्सा अन्दर ही अन्दर सुलग रहा था. इसी के चलते बाद में उसने दुष्टबुद्धि पर हमला कर उसे मार डाला. इस बात को हम आज के समय में क्या कहते है? हां, सही पहचाना हॉनर किलिंग! क्या बहन के पति की हत्या करने वाला रावण आप को महात्मा और आदर्श भई प्रतीत होता है?
ज़ाहिर है कि इस बात से शूर्पनखा बड़ी व्यथित हो उठी. प्रतिशोध की भावना उसके मन में धधक उठी. अपने पति के हत्या के प्रतिशोध के लिए वह तड़पने लगी. ऐसे में इधर-उधर भटकते हुए उसे राम और लक्ष्मण इन रघुकुलके दो वीर पुरुष दिखाई दिए, और उस के मन में पनपती प्रतिशोध की भावना ने एक षडयंत्र पैदा हुआ. पहले राम और बादमें लक्ष्मण के प्रति अनुराग दिखाने वाली शूर्पनखा जब सीता पर झपटी, लक्ष्मण ने उसे रोक उस के नासिका और कर्ण छेद दिए. इस बात की शिकायत उसने पहले उसके भाई राक्षस खर से की. खर और दूषण दक्षिण भारत में रावण के राज्य की रखवाली करते थे. इन दो राक्षसों ने राम और लक्ष्मण पर हमला किया, और राम-लक्ष्मण ने उन का बड़ी आसानी से पारिपत्य किया. रावण का राज्य थोड़ा ही क्यों न हो, कुतरा गया, इस विचार से हर्षित शूर्पनखा रावण के सम्मुख राम और लक्ष्मण की शिकायत ले गई. अब रावण प्रचंड क्रोधित हुआ. क्यों कि राम-लक्ष्मण ने उसके राज्य में सेंध लगाकर उसकी बहन को विरूप किया, और उसके दो भाईयोंकी ह्त्या की थी. अब तक बहन के सम्मान के बारे में पूर्णतया उदासीन रावण अपने राज्य पर हमले की बात से आगबबूला हो गया, और प्रतिशोध स्वरुप उसने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया. आगे का घटनाक्रम सर्वविदित है, मैं उसे दोहराना नहीं चाहूंगा!
रावण की हवस के बारे में और एक कथा है. एक दिन हिमालय में घूम रही रावण को ब्रह्मर्षी कुशध्वज की कन्या वेदवती दिखाई दी. स्वभाव से ही लंपट रावण का उस पर लट्टू हो जाना कोई आश्चर्य की बात न थी. उसे देखते ही रावण ने उस से बात करने की कोशिश की, और पूछा, कि वह अबतक अविवाहित क्यों थी. उसने रावण को बताया कि उसके पिता की इच्छा उसका विवाह भगवान विष्णु से करने की थी. इसका पता चलते ही वेदवती की चाहत पाने के इच्छुक एक दैत्यराज ने उनकी हत्या कर दी. पति की हत्या में ग़मगीन उस की माँ ने भी अपनी जान दे दी. तब से अपने पिता की इच्छा की पूर्ति के लिए वह श्री विष्णु की आराधना कर रही थी. अनाथ और जवान कन्या देख कर रावण का मन डोल गया और उस ने उससे उसे अपनाने की प्रार्थना की. लेकिन वेदवती का निश्चय अटल था. उसने रावण को मना कर दिया. रावण अपनी फितरत के अनुसार उसके बाल पकड़ कर उस पर जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा. वेदवती ने अपने बाल काट कर खुद को छुड़ा लिया और अग्निप्रवेश कर जान दे दी. मरते हुए उसने रावण को श्राप दिया कि “मैं तो अब मर जाऊंगी, लेकिन मैं फिर से जन्म ले कर तुम्हारे मृत्यु का कारण बनूँगी”!
इसके आगे की कहानी कई पर्यायों में है. एक में अग्निप्रवेश कर चुकी वेदवती को अग्निदेव बचा लेते है, और उसे अपनी पुत्री की तरह पालते है. बाद में जब रावण सीता का हरण कर ले जा रहा होता है, तब वे वेदवती और सीता को आपस में बदल देते है, और सीता को अपने पास रख लेते है. बाद में जब सीता राम को यह बात बता कर वेदवती का पत्नी के रूप में स्वीकार करने की बात कहती है, तो राम उसे एक पत्नीव्रत का हवाला दे कर मना कर देते है. तब वेदवती पुन: अग्निप्रवेश करती है. आगे पद्मावती के नाम से जन्म लेने पर वेदवती से विवाह कर श्रीनिवास के रूप में श्रीविष्णु वेदवती के पिता की इच्छा का आदर करते है.
ऐसा भी कहा जाता है कि वेदवती ही सीता के रूप में जन्म ले कर रावण के मृत्यु का कारण बनी. ऐसा है, कि मैं तो खुद उस काल में उपस्थित नहीं था. लेकिन राम पर मनगढ़ंत आरोप करनेवाले हिन्दू द्वेषी भी वहाँ थे नहीं, और उनके अनर्गल संदेशोंको सच मान नक़लचेप करनेवाले बेअक्ल लोग भी तो नहीं थे.
अत: सगी बहन के पति की शक के बिनाह पर हत्या करने वाला और दिखाई पड़ने वाली हर सुन्दर स्त्री का बलात्कार, या वैसी कोशिश करनेवाला रावण आजके बहन का आदर्श कैसे हो सकता है, यह बात मेरे समझ के परे है!
रावण की अगर तुलना करनी ही है, तो वह आज के बिल क्लिंटन, टायगर वुड्स या वैसे ही लंपट बलात्कारी से हो सकती है. सत्ता के लिए, कुर्सी बचाकर रखने के लिए जी-जान की कोशिश करने वाले आधुनिक स्वयंघोषित कमीने राजनेताओं से हो सकती है. अनेक प्रलोभनों का सामना कर आखिर तक एक-पत्नि-व्रत का पालन करने वाले राम से तो हरगिज नहीं हो सकती.
पाठकों, आप एक बड़े षडयंत्र का शिकार हो रहे है. कई तरीकोंसे हमारे मानसपटल पर यह अंकित करने की कोशिश हो रही है कि हर भारतीय चीज बेकार है. हर त्यौहार के बारे में वह त्यौहार कैसे प्रदूषण फैलाता है, कैसे प्राकृतिक संसाधनों का नाश करता है, ऐसी बाते फैलानेवाले सन्देश सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे है. भारतीयोंके श्रद्धास्थान राम, कृष्ण, इनपर छींटाकशी के प्रयास होते है, इतना ही नहीं, डाक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे ऋषितुल्य व्यक्तित्व को “Bomb Daddy” और संघ का लड़ाकू अजेंडा आगे ले जाने वाले भारतीय पुरुषसत्ताक पद्धति का पुरस्कर्ता कहा जाना वगैरह इसमें शामिल है. अगर यकीन न हो तो राजदीप सरदेसाई की पत्नि सागरिका घोष के लेख आन्तरजाल पर खोज कर देखें.
दुर्भाग्यवश हम भारतीयों की एक बुरी आदत है – आत्मक्लेश, आत्मपीडा! इस बारे में डाक्टर सुबोध नाइक का लिखा हुआ एक परिच्छेद उद्धृत करना चाहता हूँ: “खुद में अपना परीक्षक होना अपनी प्रगति के लिए बड़ी अच्छी बात है. लेकिन आप के अन्दर का यह समीक्षक कब आप का मूल्यमापन करने से आप का अवमूल्यन करने पर उतरता है, इसका आप को कई बार पता ही नहीं चलता. खुद के हर बात पर आप खुद को सिर्फ गरियाते है. “मेरे पास कुछ भी मूल्यवान नहीं है, मैं कभी अच्छा था ही नहीं” ऐसा आप का विश्वास बनता जाता है. खुद को गरियाए बगैर आप को अच्छा ही नहीं लगता. एक तरह से आप आत्मक्लेशक (masochist) बनते हो, और इसी में आप खप जाते हो. तब साक्षात ब्रह्मदेव भी आप की सहायता नहीं कर सकते.
जैसे यह निजी स्तर पर होता है, वैसे ही राष्ट्रीय स्तर पर भे होता है.”
प्रभु रामचंद्र साक्षात मर्यादा पुरुषोत्तम थे. उनके पैर के नाखून तक की हमारी औकात नहीं है. इसलिए इस तरह की आत्मक्लेश सहाय्यक अलगाववादी ताकतोंको प्रोत्साहन न दें. राम की आड़ में हिन्दुओं के श्रद्धास्थानों पर निशाना लगाने वाली ताकतों को बल न दें!
जाते जाते बता दूँ, शम्बूक वध की कहानी भी मूल रामायण में नहीं है!
संदर्भः
१) वाल्मीकी रामायण
२) **वैद्य परीक्षित शेवडे, डोंबिवली
३) डॉ सुबोध नाई़क
४) रामायण संबंधीत अनेक स्त्रोत
मूल लेखकः श्री मंदार दिलीप जोशी
हिंदी भाषांतर/रूपांतरः श्री कृष्णा धारासुरकर
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