हाल ही में एक कन्नड कहावत पढने को मिली, "बेन्नु बिडद पिशाचि होन्नु कोट्टरे निंतीते". अर्थात, आप के पिछे पडा हुआ पिशाच्च उसको सोना देने से (वो जो करने निकला है वो करने से) रुक नहीं जाएगा. यह कहावत पढते ही कुछ दिनो पहले घटी हडकंप मचा देने वाली एक घटना याद आ गयी.
हुआ यूं की कुछ दिनों पहले मोदी भक्तों और समर्थकों में सोशल मिडीया में जबरदस्त खलबली मच गयी. यह शायद पहली बार हुआ के भक्त मोदी सरकार पे भडक गये थे.
हुआ युं के खबर आयी केन्द्र सरकार टेक्स्टाईल मंत्रालय के हॅन्डलून डिव्हिजन और खबरों के चॅनल एन.डी.टी.व्ही. के एन.डी.टी.व्ही. रीटेल इस इकाई के बीच हॅन्डलूम इस प्रकार को लोकप्रिय बनाने के लिये एक समझोता हुआ.
ये खबर आग से भी तेज फैल गयी. केवल सामान्य राष्ट्रवादी लोग और भाजपा एवं मोदी समर्थक ही नहीं, मोदी भक्त भी भडक गए और फिर सोशल मिडिया पर विरोध का ऐसा तूफान आया जिसका स्वयं माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दखल देनी पडी. इन लोगों को ये बात बिलकुल हजम नहीं हुयी की जो चॅनल हमेशा न केवल भाजपा और मोदीजी ही नहीं बल्की राष्ट्र के विषय में भी गलत खबरें देता है उस के साथ सरकार के एक मंत्रालय ने किसी भी प्रकार का रिश्ता रखने की सोची भी कैसे? २६/११ के दौरान इस चॅनल ने क्या किया था, ये इतिहास है. लोगों का यह भी मानना है की ये चॅनल न केवल राष्ट्रविरोधी है अपितु इसके पत्रकारों के हाथ हमारे सैनिकों के खून से रंगे हैं. ऐसे चॅनल के साथ किसी भी प्रकार के संबंध रखने का अर्थ है अपने और राष्ट्र के आत्मसन्मान का जानबूझ के अपमान करना.
सोशल मिडीया पे इस कदम के समर्थन में यह भी पढने को मिला की यह एक लोकतंत्र प्रक्रिया हे अनुसार हुआ और इसको हम केवल हमारे गलत मानने के बल पर हम इसका विरोध नहीं कर सकते. भई लोकतंत्र के सूत्रों का पालन क्या एन.डी.टी.व्ही ने कभी किया है? समर्थन का एक मुद्दा तो यह भी था की ऐसा करने से हम उस चॅनल को अपने नियंत्रण में कर सकते हैं. लेकिन प्रश्न ये है की साँप को दूध पिलाने से क्या फायदा? मराठी में कहते हैं की "सापाला दूध पाजलं तरी तो चावायचा राहत नाही", मतलब साँप को दूध पिलाया जाए तो वो आपको काटने से परहेज नहीं करेगा.
समर्थक और भक्त इस कदर भडक गए की ऐसा लगने लगा की अगर ये समझोता रद्ध न किया गया तो वे मोदी सरकार को कभी माफ नहीं करेंगे. सोशल मिडीया का यह अभियान जो तभी शांत हुआ जब मोदीजी को स्वयं हस्तक्षेप करना पडा और टेक्स्टाईल मंत्रालय हे एन.डी.टी.व्ही. के साथ उस समझोते को रद्ध करके उस भूत को सोना देने से परहेज कर लिया.
इसी लिये न तो साँप को दूध पिलाईये और ना तो भूत को सोना दिजीये. दोनों कहावतों को और किस विषय में आप इस्तमाल कर सकते है? सोचिये, किन किन सापों को आप दूध पिलाने की सोच रहे हैं और किन किन भूतों को सोना देने से आपको फायदा नजर आ रहा है?
© मंदार दिलीप जोशी
वैशाख कृ. १, शके १९३८