अनिवार्य है की हम भी देखेंगे
जो ईश्वर वचन देता है
जो वेद पुराणो का रचयिता है
जब अत्याचारों के मेघ
रूई की भांति उड़ जाएँगे
हम भक्तो के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
तथा आतंकीयों के शीर्षपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब पापीयों के ताबे से
सब मंदिर छुडवाये जाएँगे
सब पवित्रता के शिष्यगण
सिंहासन पे बिठाए जाएँगे
सब 'ताज' खोले जाएँगे
सब मदमत्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा रामलल्ला का
उपस्थित है जो अयोध्या में
जो न्यायी भी है द्रष्टा भी
उठ्ठेगा तत्वमसि का उद्घोष
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेंगे सनातनी
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
© मंदार दिलीप जोशी
माघ द्वादशी, शके १९४३