कुछ लोगों के मन में उठा प्रश्न सटीक है - पहले भी मुस्लिम गायक हिंदू देवदेवताओं के स्तुतीपर गीत गा चुके हैं, तो फिर सुहाना के ऐसा करने पर बवाल क्यों?
मेरा आकलन यह है कि जब जब जो जो होना है, तब तब सो सो होता है. अर्थात एम.एस.एम यानी मुख्यधारा के प्रसारमाध्यम एवं सोशल मिडिया पे कोई भी ट्रेन्ड यूंही नहीं चलता. इसे अलग परिपेक्ष्य में देखना पडता है. यहां कुछ भी समय से पहले, नसीब से ज्यादा, और कारण के अभाव में नहीं होता.
कुछ दिनो पहले ही गुरमेहर कौर की ट्विट से उठा बवाल आपको ज्ञात ही होगा. उसने ट्विट में कहा था की मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं मारा, युद्ध ने मारा. इस बात पर राष्ट्रवादी गुस्से हो कर उसपे टूट पडे और मुख्यधारा के प्रसारमाध्यम एवं सोशल मिडिया पर मंडरा रहे असुर प्रकृति को अवसर मिल गया की कैसे देश मे असहिष्णुता एवं विचारस्वातंत्र्य का दमन हो रहा है. किंतु जब वे भी जानते थे और आप-हम भी जानते हैं कि यह केवल अपने विचारों को प्रकट करने का विषय नहीं था. अगर आप किसी पक्ष या व्यक्ती को कोसें तो वह विचारस्वातंत्र्य के अंतर्गत आ सकता है. लेकिन गुरमेहर के इस ट्वीट का अन्वयार्थ यह था कि आज तक भारत के जितने भी सैनिक एवं और लोग मारे गये, उन सब की मृत्यू का भारत एक देश के रूप में उतना ही उत्तरदायी है जितना पाकिस्तान. अतः भारत को शांती प्रक्रिया को आगे ही बढाना चाहीये. अब यह बात कितनी बचकानी एवं झूठी है यह तो आपको बताने की आवश्यकता नहीं है. चूंकि अब मुख्यधारा के प्रसारमाध्यमों का दबदबा उतना नहीं रहा, इस बात की जमकर और विभिन्न कोणों से आलोचना हुई. गुरमेहर एक लडकी है और केवल २० वर्ष आयु की है यह कुतर्क भी उसे बचा न पाये. विरोध इतका बढ गया कि गुरमेहर को उसे किसीने बलात्कार की धमकी दी है ऐसा बोलना पडा. इससे उसके विरोध में बोलने वालों में ही फूट पड गयी, और कईं लोग केवल इस धमकी वे विषय में क्यों न हो, गुरमेहर की तरफ हो लिये. आखिर एक लडकी की इज्जत का सवाल था न! लेकिन बाद में जब यह ज्ञात हुआ कि उसे बलात्कार की धमकी देने वाला उसी के लिबरल गिरोह वाले किसी विद्यार्थी संघटन का सदस्य था, तो यह बात जैसे उछाली गयी थी उससे दोगुने गति गायब भी हो गयी. फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी संघटन के सदस्योंने ही पुलिस में केस दर्ज करवाया.
खैर, आप को जो तथ्य पहले से ज्ञात हैं उन्हें फिरसे आप के सामने रखने के कारण क्षमाप्रार्थी हूं, परंतु सुहाना का दमन उछाले जाने के कारण तक पहुंचना है तो हमें गुरमेहर के विषय को थोडा देखना होगा इस कारण यह इतिहास लेखन करना पडा. तो सुहाना का किस्सा क्या है? सुहाना सईद ने एक कन्नडा रियलिटी शो में एक हिंदू भक्तीगीत गाया था. मैं इस गायक से अनभिज्ञ हूं लेकिन इस विषय में अधिक जानकारी लेने हेतु उसके एक दो गाने सुने. भाषा तो समझ नही आयी परंतु यह ज्ञात हो गया की यह एक प्रसिद्ध गायिका है और लोगों को इसके गाने पसंद आते हैं. तो सुहाना ने एक रियलिटी शो में एक हिंदू भक्तीगीत गाया और इसके पश्चात शुरू हुआ इस्लामियों की ओर से उसपे धमकीयोंका सत्र. उसके विरोध में वही पुराने तर्क सुनने मिले की इन लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिये क्योंकि देखो इस्लाम कितना अच्छा एवं शांतीपूर्ण धर्म है इत्यादि. लेकिन सबसे बडा कुतर्क यह देखा गया की अगर गुरमेहर को अपनी बात रखने का अधिकार है तो सुहाना सईद को भी उसके जो मन मे आये वह गाने का अधिकार है.
यूं तो महंमद रफी से लेकर कईं मुसलमान गायकों ने, इतनी पुरानी बातें छोड़िए , आजकल के गायकों ने भी हिंदू भक्तीगीत गाए हैं, तब तो कोई बवाल खडा नहीं हुआ, तो अब क्यों इसका उत्तर आप को अब तक संभवतः मिल गया होगा. गुरमेहर मामले मे ठंडे किये गये मुख्यधारा माध्यक तथा सोशल मिडिया में लिबरल भाडे के टट्टूओं को गुरमेहर के नाम पर लगे धब्बे को धोने का अवसर चाहिये था, तो फिर वह क्या करते. सारी दलीलें तो समाप्त हो चुकी थीं. तो अचानक उनकी नजर एवं कान पडे सुहाना के गाए हुए हिंदू भक्ती संगीत पर.
लिबरल गिरोह का मस्तिष्क टेढा ही चलने के कारण उन्होंने गुरमेहर की विषैले फल समान बात को, जो विष अब देश के कुछ विश्वविद्यालयों के कईं युवाओं मे फैल चुका है, उसे सुहाना के हिंदू भक्तीगीत गाने के अधिकार के समान स्तर पर लाकर खडा कर दिया, की देखो देशवासियों तुम वहां भी गलत थे यहां भी गलत हो. दोनो ही विचारस्वातंत्र्य का ही हिस्सा हैं. तो फिर काहे को सुहाना को गरिया रहे हो? क्या अधिकार है तुम्हें? हालाकि यह बात सुहाना को धमकाने वाले इस्लामी कट्टरपंथियों को कही गयी थी, परंतु इसका लक्ष्य गुरमेहर को विरोध करने वाले ही थे. कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना.
देखा आपने कैसे छल तथा चतुराई से दोनो लडकियों को एवं उनके विषयों को समक़क्ष लाकर खडा कर दिया गया?
और हां, अगर आप की सहानुभूति आयसिस के आतंकी सैफुल्ला के बाप से होकर सुहाना सईद की ओर बहने पर आमादा है, तो आप को इसका स्मरण करा दूं कि उसकी गायकी पैसे के लिये एवं कोई प्रतियोगिता मे विजयी होने हेतू है, कोई भगवान के प्रति श्रद्धा नहीं उमड पडी उसकी.
कुछ समझे?
© मंदार दिलीप जोशी
माघ शु. १३, शके १९३८
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