होई कांड दादरीचं, मिडीयाला लागे घोर |
जवा घडते मालदा, म्हणे भुरटा तो चोर ||
करी दादरी दादरी, त्याले शिक्षा करी कोन |
उभा जाळला मालदा, डोळे वटारी ना कोन ||
दीदी जेहादी जेहादी, तिचं न्यारं ते तंतर |
पाकी अतिरेकी बरे, त्याले गोळीचा मंतर ||
दीदी गुलाम गुलाम, अली गातोया गझला |
मालद्यात दंगेखोर, जाळी मजला मजला ||
आले कसाई कसाई, झाला मुर्दाड कायदा |
आमच्या दीदीले हिरव्या, मिळे मतांचा वायदा ||
मारी कोकरू कोकरू, म्हणे भावना धार्मिक |
झुंज बैलांशी करता, मिडीयाले होतो शोक ||
क्रूर मानूस मानूस, मुके बैल झुंजवले |
मुल्ला दयाळू दयाळू, त्याले खाऊन टाकले ||
देवळात नको बाई, तरी आम्ही जानारच |
ब्रह्मचार्याच्या कुटीत, गोंधळ होनारच ||
असा कसं हे मिडिया, त्याले डोकं गुडघ्यात |
पैकं खाऊन इकतो, इये देशाची इज्जत ||
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...बहिणाबाईंची क्षमा मागून.
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© मंदार दिलीप जोशी
पौष शु. ९, शके १९३७
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kya baat.... sad but true...
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