रामायण के परसोंं के एपिसोड में महाराज बिभीषण वैद्यराज सुषेण से कहते हैं:
धर्म और अधर्म की व्याख्या सदैव एक नहीं रहती। वैद्य का धर्म है, सबकी पीडा हरना एवं उनके प्राणो की रक्षा करना। वैद्यक किसीं एक के लिये नहीं, अपितु सारे मानवजाती की दुखदर्द की रक्षा का उपाय करने एवं उसकी पीडा हरने के लिये है। यही चिकित्सक का सर्वोपरी धर्म है।
वैद्यराज सुषेण कहते हैं: राजनीती का सिद्धान्त कहता हैं कि आपको मेरा विश्वास नहीं करना चाहीये। मैं शत्रूपक्ष का वैद्य हूं। आप के रोगी का अहित कर सकता हूं।
इसपर प्रभू श्रीराम कहते हैं:
वैद्य का कोई शत्रू नहीं होता, कोई मित्र नहीं होता। वैद्य और रोगी के बीच तो केवल विश्वास की एक अलौकिक डोर होती है। मैं अपने अनुज लक्ष्मण को आप को सुपूर्द करता हूं। राजभक्ती का पालन करने के लिये चाहे तो इसके प्राण ले लिजीये अथवा वैद्य का धर्म पालन करने के लिये इसे जीवनदान दे दिजीये, ये मैं आप पर छोडता हूं। आप पर मुझे पूरा विश्वास है।
प्रभू श्रीराम तो अपने शत्रू के वैद्यराज के हाथ अपने अनुज के प्राण रख देते हैं। तथा रावण जैसे असुर के राजवैद्य सुषेण भी लक्ष्मण की सुश्रुषा करने के लिये तैय्यार हो जाते हैं।
हमारे वैद्यराज एवं समस्त आरोग्य सेवकों ने इसी प्रकार अपने पराये का भेद किये बिना, समस्त रोगीयों की पीडा का उपाय एवं उनके जीवित की रक्षा कर रहे हैं। यह रोग तो ऐसा है कि रोगी पर उपचार करने वाले वैद्यक समुदाय को ही यह रोग होने की पूर्ण संभावना होती है। फिर भी हमारे समस्त वैद्यराज तथा आरोग्यसेवक यह सोचे बिना सारे रोगीयों की सेवा कर रहे हैं कि इनमें से कुछ रोगीयों में ऐसे असुरी मानसिकता के लोग हैं जिनके विचार कई शतकों से मानवता का विनाश ही करते आ रहे हैं, एवं भविष्य में भी करते रहेंगे ।
परंतु इसके उपलक्ष में उनपर कुछ एकस्रोत अधर्मी (sℹ️ngle s⭕️urce threat) पत्त्थर फेंकने का, वमन तथा थूत्कृत्य करने का, विवस्त्र होकर नग्नावस्था में नृत्य करने का दुःसाहस कर रहे हैं। इन्हें न मानवता की चिंता है न महिलाओं के सन्मान की। आज न तो ऐसे धर्मपालन करने वाले प्रभू राम हैं न तो ऐसे रोगी जिनके लिये वैद्यराज तथा आरोग्यसेवक अपने प्राण दांव पर लगा दें और न तो ऐसे धर्मपालक रोगी एवं उनके परिजन हैं जो शत्रू के हाथ अपने रोगी के प्राण विश्वासपूर्वक सुपूर्द कर दें।
इस अवस्था में हमारे वैद्र्यराज तथा आरोग्यसेवकों को स्मरण रहे, कि वैद्यों पर जो रोगी की रक्षा का दायित्व है, वो केवल उस समय तक है जब तक रोगी अपने धर्म का पालन करे। रोगी यदि अपनी व्याधी के कारण उत्पन्न भ्रम के चलते कोई असभ्य कृत्य करता है तो वह रोग का ही एक भाग होता है, तस्मात इस अवस्था में भी वैद्य अपने सुश्रुषा के धर्म का पलन करने के प्रति बाध्य होते ही हैं।
परंतु यदि सामनेवाला केवल अपने धर्म का पालन नहीं करता अपितु वो एक महापापी विचार से षडयंत्र का भाग बनकर वैद्य समुदाय पर उनके दुष्कृत्यों से अत्याचार करता है, तो पुलिस, न्यायालय, एवं सरकार का यह कर्तव्य है कि वे वैद्यक समुदाय को मार्गदर्शन करें कि ऐसे अधर्मीयों से कैसे वर्तन करें तथा उन्हें ऐसे वर्तन के लिये यह अधिकार भी प्रदान करें जिससे उन्हें आगे चलकर समस्या न उत्पन्न हो।
प्रभू श्रीराम ने यह भी कहा था कि हमारी शरण में आनेवाले के प्राणरक्षण करना हमारा धर्म है। परंतु यदि कोई युद्ध की इच्छा से हमारे समक्ष उपस्थित होता है तो उससे युद्ध करना ही हमारा धर्म तथा कर्तव्य है। तो यह एकस्त्रोत अधर्मी हमारे वैद्यक समूदाय से जिस प्रकार का वर्तन कर रहे हैं, वह युद्ध ही तो है। इस कारण वैद्यक समुदाय को ऐसे मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता है।
प्रभू श्रीराम सबकी रक्षा करे। जय श्रीराम 🙏
© मंदार दिलीप जोशी
धर्म और अधर्म की व्याख्या सदैव एक नहीं रहती। वैद्य का धर्म है, सबकी पीडा हरना एवं उनके प्राणो की रक्षा करना। वैद्यक किसीं एक के लिये नहीं, अपितु सारे मानवजाती की दुखदर्द की रक्षा का उपाय करने एवं उसकी पीडा हरने के लिये है। यही चिकित्सक का सर्वोपरी धर्म है।
वैद्यराज सुषेण कहते हैं: राजनीती का सिद्धान्त कहता हैं कि आपको मेरा विश्वास नहीं करना चाहीये। मैं शत्रूपक्ष का वैद्य हूं। आप के रोगी का अहित कर सकता हूं।
इसपर प्रभू श्रीराम कहते हैं:
वैद्य का कोई शत्रू नहीं होता, कोई मित्र नहीं होता। वैद्य और रोगी के बीच तो केवल विश्वास की एक अलौकिक डोर होती है। मैं अपने अनुज लक्ष्मण को आप को सुपूर्द करता हूं। राजभक्ती का पालन करने के लिये चाहे तो इसके प्राण ले लिजीये अथवा वैद्य का धर्म पालन करने के लिये इसे जीवनदान दे दिजीये, ये मैं आप पर छोडता हूं। आप पर मुझे पूरा विश्वास है।
प्रभू श्रीराम तो अपने शत्रू के वैद्यराज के हाथ अपने अनुज के प्राण रख देते हैं। तथा रावण जैसे असुर के राजवैद्य सुषेण भी लक्ष्मण की सुश्रुषा करने के लिये तैय्यार हो जाते हैं।
हमारे वैद्यराज एवं समस्त आरोग्य सेवकों ने इसी प्रकार अपने पराये का भेद किये बिना, समस्त रोगीयों की पीडा का उपाय एवं उनके जीवित की रक्षा कर रहे हैं। यह रोग तो ऐसा है कि रोगी पर उपचार करने वाले वैद्यक समुदाय को ही यह रोग होने की पूर्ण संभावना होती है। फिर भी हमारे समस्त वैद्यराज तथा आरोग्यसेवक यह सोचे बिना सारे रोगीयों की सेवा कर रहे हैं कि इनमें से कुछ रोगीयों में ऐसे असुरी मानसिकता के लोग हैं जिनके विचार कई शतकों से मानवता का विनाश ही करते आ रहे हैं, एवं भविष्य में भी करते रहेंगे ।
परंतु इसके उपलक्ष में उनपर कुछ एकस्रोत अधर्मी (sℹ️ngle s⭕️urce threat) पत्त्थर फेंकने का, वमन तथा थूत्कृत्य करने का, विवस्त्र होकर नग्नावस्था में नृत्य करने का दुःसाहस कर रहे हैं। इन्हें न मानवता की चिंता है न महिलाओं के सन्मान की। आज न तो ऐसे धर्मपालन करने वाले प्रभू राम हैं न तो ऐसे रोगी जिनके लिये वैद्यराज तथा आरोग्यसेवक अपने प्राण दांव पर लगा दें और न तो ऐसे धर्मपालक रोगी एवं उनके परिजन हैं जो शत्रू के हाथ अपने रोगी के प्राण विश्वासपूर्वक सुपूर्द कर दें।
इस अवस्था में हमारे वैद्र्यराज तथा आरोग्यसेवकों को स्मरण रहे, कि वैद्यों पर जो रोगी की रक्षा का दायित्व है, वो केवल उस समय तक है जब तक रोगी अपने धर्म का पालन करे। रोगी यदि अपनी व्याधी के कारण उत्पन्न भ्रम के चलते कोई असभ्य कृत्य करता है तो वह रोग का ही एक भाग होता है, तस्मात इस अवस्था में भी वैद्य अपने सुश्रुषा के धर्म का पलन करने के प्रति बाध्य होते ही हैं।
परंतु यदि सामनेवाला केवल अपने धर्म का पालन नहीं करता अपितु वो एक महापापी विचार से षडयंत्र का भाग बनकर वैद्य समुदाय पर उनके दुष्कृत्यों से अत्याचार करता है, तो पुलिस, न्यायालय, एवं सरकार का यह कर्तव्य है कि वे वैद्यक समुदाय को मार्गदर्शन करें कि ऐसे अधर्मीयों से कैसे वर्तन करें तथा उन्हें ऐसे वर्तन के लिये यह अधिकार भी प्रदान करें जिससे उन्हें आगे चलकर समस्या न उत्पन्न हो।
प्रभू श्रीराम ने यह भी कहा था कि हमारी शरण में आनेवाले के प्राणरक्षण करना हमारा धर्म है। परंतु यदि कोई युद्ध की इच्छा से हमारे समक्ष उपस्थित होता है तो उससे युद्ध करना ही हमारा धर्म तथा कर्तव्य है। तो यह एकस्त्रोत अधर्मी हमारे वैद्यक समूदाय से जिस प्रकार का वर्तन कर रहे हैं, वह युद्ध ही तो है। इस कारण वैद्यक समुदाय को ऐसे मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता है।
प्रभू श्रीराम सबकी रक्षा करे। जय श्रीराम 🙏
© मंदार दिलीप जोशी
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