हाल ही में एक कन्नड कहावत पढने को मिली, "बेन्नु बिडद पिशाचि होन्नु कोट्टरे निंतीते". अर्थात, आप के पिछे पडा हुआ पिशाच्च उसको सोना देने से (वो जो करने निकला है वो करने से) रुक नहीं जाएगा. यह कहावत पढते ही कुछ दिनो पहले घटी हडकंप मचा देने वाली एक घटना याद आ गयी.
फ्लॅशबॅकः
२०१२ की आझाद मैदान की घटना याद है? यह घटना हम सब की आँखें खोलने के लिये पर्याप्त थी. लेकिन या तो हमने मन की आँखोंपर पट्टी बांध ली है या हमारी स्मरणशक्ती कमजोर है, क्योंकी आज हम महेश भट्ट और संजय निरुपम जैसों के देशविरोधी बकवास से आहत और गुस्सा हो रहें हैं.
इस घटना से पहले एस.एम.एस. और व्हॉट्सॅप के द्वारा कुछ भडकाई संदेश व्हारयल किये जा रहे थे. इस बारे में पुलिस को पथा था. घटना से एक दिन पहले पुलिस को यह सूचना मिल चुकी थी की जुम्मे के नमाज के समय लोगों को यह आवाहन किया गया था की म्याममार मे रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचारों के खिलाफ मोर्चें मे भारी संख्या में शामिल हो. इस मोर्चे का आयोजन करने वाले रझा अकादमीने पुलिसको यह कहकर आश्वस्त किया था की मोर्चे में सिर्फ करीब १५०० के आस पास लोग आयेंगे. लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन शुरवात मे १,५०० नहीं, बल्कि १५,००० लोग आये, और धीरे धीरे यह संख्या ४०,००० तक पहुंच गये. जैसी अपेक्षा थी, मोर्चा हिंसक हो गया. जैसा कोई सैन्य काम करता हो वैसेही उस मोर्चे के लोग बर्ताव कर रहे थे. मोर्चे मे से एक भागने मिडिया के ओ.बी. व्हॅन तथा लोगों पर हमला किया. दंगाईयों ने गाडीयों को आग लगाना, बसों पे हमला करना, और पुलीस पे पथराव करना आरंभ किया. तीन ओ.बी. व्हॅन और एक पुलीस की गाडी को आग लगा दी गयी. पथराव के वजह से एक बेस्ट की बस, दो कारें, और पांच दुपहिया गाडीयों का भारी नुकसान हुवा. इतना ही नहीं, पाच महिला पुलिसकर्मियों के साथ दंगाईयों ने दुष्कर्म किया और उनपर हॉकी स्टिक, लोखंड के रॉड, पत्थर, और नुकिले लकडी की काठी से हमला किया. और अमर जवान ज्योती का इन शांतीप्रिय समुदाय के लोगों के क्या किया यह तो सर्वविदीत है.
सलीम अल्लारख्खां चौकिया (अली), वह आदमी जिसने, एक पुलिसकर्मी के हाथ से एक सेल्फ-लोडिंग रायफल छीन के उससे फायरिंग की थी उसे १६ अगस्त को गिरफ्तार किया गया. अब्दुल कादीर महम्मद युनुस अन्सारी को बिहार से २८ अगस्त को अमर जवान ज्योती को नुकसान किये जाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया. क्या संजय निरुपम इस बात को झुठला सकते है की यह दोनो काँग्रेस पार्टी से रिश्ता रखते थे? क्या संजय निरुपम इस बात को झुठला सकते है की गिरफ्तार किये गये ४३ लोगों मे से बहुतांश लोग काँग्रेस पार्टी के सदस्य थे? मौलाना अख्तर (उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष) और सईद नुरी (रझा अकादमी के सेक्रेटरी) जिन्हे गुनाह करने की साजीश, खून करना, सार्वजनिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाना, गैरकानूनी सभा, और हिंसा करने के आरोप लगाये गये थे - क्या संजय निरुपम इस बात को झुठला सकते है की उनका इन दोनों के साथ करीबी संबंध है? क्युं संजय निरुपमने बादमें इन्ही देशद्रोही इस्लामी धर्मांधों को भरी संसद में बचाव किया था?
माटुंगा डिव्हिजन की एक महिला ट्रॅफिक हवालदार सुजाता पाटील ने एक पुलिस द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले संवाद नाम के मॅगजीनमें आझाद मैदान इसी नाम से एक कविता लिखी छपवाई:
हम न समझे थे बात इतनी सी,
लाठी हाथ में थी
पिस्तौल कमर पे थी,
गाड़ियाँ फूंकी थी
आँखे नशीली थी,
धक्का देते उनको तो भी वो जलते थे,
हम न समझे थे बात इतनी सी,
होंसला बुलंद था,
इज्जत लुट रही थी,
गिराते एक एक को,
क्या जरुरत थी इशारो की,
हम न समझे बात इतनी सी,
हम न समझे बात इतनी सी,
हिम्मत की गद्दारों ने,
अमर ज्योति को हाथ लगाने की,
काट देते हाथ उनके तो
फ़रियाद किसी की भी ना होती,
हम न समझे बात इतनी सी
भूल गये वो रमजान
भूल गये वो इंसानियत,
घात उतार देते एक एक को,
अरे, क्या जरुरत थी किसी से डरने की,
संगीन लाठी तो आपके हाथ में थी
हम न समझे थे बात इतनी सी,
हमला तो हमपे था,
जनता देख रही थी,
खेलते गोलियों की होली तो,
जरुरत न पड़ती रावण जलाने की,
रमजान के साथ दिवाली भी होती
हम न समझे थे बात इतनी सी,
सांप को दूध पिलाकर
बात करते है हम भाईचारा की,
ख्वाब अमर जवानों के,
जनता भी डरी डरी सी,
हम न समझे बात इतनी सी
हम न समझे बात इतनी सी
इस कविता की कुछ अपेक्षित लोगों ने जमकर आलोचना की. फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने उलटा चोर कोतवाल को डांटे इस कहावत को सच करते हुए इस कविता को अल्पसंख्य समुदाय के प्रति पुलीस के द्वेष का प्रतीक करार दिया और पुलिस को मनोविकार तज्ञ के कुर्सी पर ही बिठा देने का अनुरोध किया. लोगों, यही लोग हैं जो टॉलरन्स की बात किया करते हैं, दंगों को टॉलरेट कर सकते हैं, अमर जवान ज्योती पर हमला टॉलरेट कर सकते हैं, स्वयं की सुरक्षा हेतू पुलिस से रक्षा की अपेक्षा करते हैं लेकिन महिला पुलिसकर्मियों की इज्जत पर दंगाईयों द्वारा हमला होना टॉलरेट कर सकते हैं, लेकिन दंगाईयों के विरोध मे लिखे गये एक कविता को टॉलरेट नहीं कर सकते.
लोगों, अब आज की तारीख में लौट आईये. यह सिर्फ आप को याद दिला ने के लिये था की संजय निरुपम और महेश भट्ट जैसे नीच लोगों से जिनकी नियत क्या है उस पर अभी प्रकाश डाला है, उनके देशविरोधी वक्तव्योंसे आहत होना व्यर्थ है. इन सापों को दूध किसने पिलाया है? आपने. इनको व्होट किसने दिये हैं? आपने. इनकी फिल्में किसने देखी हैं और उस द्वारा इनकी जेबें किसने भरी हैं? आपने.
मित्रों, अपेक्षाभंग तभी होता है जब किसीसे कोई अपेक्षा हो. शुरवात में को वाक्य लिखा था वह फिरसे दोहराता हूं. "बेन्नु बिडद पिशाचि होन्नु कोट्टरे निंतीते". अर्थात, आप के पिछे पडा हुआ पिशाच्च उसको सोना देने से (वो जो करने निकला है वो करने से) रुक नहीं जाएगा. तो इस प्रवचन का तात्पर्य यह है की बिना किसी अपवाद के इन्हे सोना देना बंद करो. इन भूतों को सोना देने से कुछ फायदा नहीं. हम इन भूतों को बहिष्कार की लात जरूर मार सकते हैं. तो आगे क्या करना है, या फिर क्या नहीं करना है, आप को पता है.
बाकी जो है, सो हैयी है.
© मंदार दिलीप जोशी
फ्लॅशबॅकः
२०१२ की आझाद मैदान की घटना याद है? यह घटना हम सब की आँखें खोलने के लिये पर्याप्त थी. लेकिन या तो हमने मन की आँखोंपर पट्टी बांध ली है या हमारी स्मरणशक्ती कमजोर है, क्योंकी आज हम महेश भट्ट और संजय निरुपम जैसों के देशविरोधी बकवास से आहत और गुस्सा हो रहें हैं.
इस घटना से पहले एस.एम.एस. और व्हॉट्सॅप के द्वारा कुछ भडकाई संदेश व्हारयल किये जा रहे थे. इस बारे में पुलिस को पथा था. घटना से एक दिन पहले पुलिस को यह सूचना मिल चुकी थी की जुम्मे के नमाज के समय लोगों को यह आवाहन किया गया था की म्याममार मे रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचारों के खिलाफ मोर्चें मे भारी संख्या में शामिल हो. इस मोर्चे का आयोजन करने वाले रझा अकादमीने पुलिसको यह कहकर आश्वस्त किया था की मोर्चे में सिर्फ करीब १५०० के आस पास लोग आयेंगे. लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन शुरवात मे १,५०० नहीं, बल्कि १५,००० लोग आये, और धीरे धीरे यह संख्या ४०,००० तक पहुंच गये. जैसी अपेक्षा थी, मोर्चा हिंसक हो गया. जैसा कोई सैन्य काम करता हो वैसेही उस मोर्चे के लोग बर्ताव कर रहे थे. मोर्चे मे से एक भागने मिडिया के ओ.बी. व्हॅन तथा लोगों पर हमला किया. दंगाईयों ने गाडीयों को आग लगाना, बसों पे हमला करना, और पुलीस पे पथराव करना आरंभ किया. तीन ओ.बी. व्हॅन और एक पुलीस की गाडी को आग लगा दी गयी. पथराव के वजह से एक बेस्ट की बस, दो कारें, और पांच दुपहिया गाडीयों का भारी नुकसान हुवा. इतना ही नहीं, पाच महिला पुलिसकर्मियों के साथ दंगाईयों ने दुष्कर्म किया और उनपर हॉकी स्टिक, लोखंड के रॉड, पत्थर, और नुकिले लकडी की काठी से हमला किया. और अमर जवान ज्योती का इन शांतीप्रिय समुदाय के लोगों के क्या किया यह तो सर्वविदीत है.
सलीम अल्लारख्खां चौकिया (अली), वह आदमी जिसने, एक पुलिसकर्मी के हाथ से एक सेल्फ-लोडिंग रायफल छीन के उससे फायरिंग की थी उसे १६ अगस्त को गिरफ्तार किया गया. अब्दुल कादीर महम्मद युनुस अन्सारी को बिहार से २८ अगस्त को अमर जवान ज्योती को नुकसान किये जाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया. क्या संजय निरुपम इस बात को झुठला सकते है की यह दोनो काँग्रेस पार्टी से रिश्ता रखते थे? क्या संजय निरुपम इस बात को झुठला सकते है की गिरफ्तार किये गये ४३ लोगों मे से बहुतांश लोग काँग्रेस पार्टी के सदस्य थे? मौलाना अख्तर (उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष) और सईद नुरी (रझा अकादमी के सेक्रेटरी) जिन्हे गुनाह करने की साजीश, खून करना, सार्वजनिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाना, गैरकानूनी सभा, और हिंसा करने के आरोप लगाये गये थे - क्या संजय निरुपम इस बात को झुठला सकते है की उनका इन दोनों के साथ करीबी संबंध है? क्युं संजय निरुपमने बादमें इन्ही देशद्रोही इस्लामी धर्मांधों को भरी संसद में बचाव किया था?
माटुंगा डिव्हिजन की एक महिला ट्रॅफिक हवालदार सुजाता पाटील ने एक पुलिस द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले संवाद नाम के मॅगजीनमें आझाद मैदान इसी नाम से एक कविता लिखी छपवाई:
हम न समझे थे बात इतनी सी,
लाठी हाथ में थी
पिस्तौल कमर पे थी,
गाड़ियाँ फूंकी थी
आँखे नशीली थी,
धक्का देते उनको तो भी वो जलते थे,
हम न समझे थे बात इतनी सी,
होंसला बुलंद था,
इज्जत लुट रही थी,
गिराते एक एक को,
क्या जरुरत थी इशारो की,
हम न समझे बात इतनी सी,
हम न समझे बात इतनी सी,
हिम्मत की गद्दारों ने,
अमर ज्योति को हाथ लगाने की,
काट देते हाथ उनके तो
फ़रियाद किसी की भी ना होती,
हम न समझे बात इतनी सी
भूल गये वो रमजान
भूल गये वो इंसानियत,
घात उतार देते एक एक को,
अरे, क्या जरुरत थी किसी से डरने की,
संगीन लाठी तो आपके हाथ में थी
हम न समझे थे बात इतनी सी,
हमला तो हमपे था,
जनता देख रही थी,
खेलते गोलियों की होली तो,
जरुरत न पड़ती रावण जलाने की,
रमजान के साथ दिवाली भी होती
हम न समझे थे बात इतनी सी,
सांप को दूध पिलाकर
बात करते है हम भाईचारा की,
ख्वाब अमर जवानों के,
जनता भी डरी डरी सी,
हम न समझे बात इतनी सी
हम न समझे बात इतनी सी
इस कविता की कुछ अपेक्षित लोगों ने जमकर आलोचना की. फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने उलटा चोर कोतवाल को डांटे इस कहावत को सच करते हुए इस कविता को अल्पसंख्य समुदाय के प्रति पुलीस के द्वेष का प्रतीक करार दिया और पुलिस को मनोविकार तज्ञ के कुर्सी पर ही बिठा देने का अनुरोध किया. लोगों, यही लोग हैं जो टॉलरन्स की बात किया करते हैं, दंगों को टॉलरेट कर सकते हैं, अमर जवान ज्योती पर हमला टॉलरेट कर सकते हैं, स्वयं की सुरक्षा हेतू पुलिस से रक्षा की अपेक्षा करते हैं लेकिन महिला पुलिसकर्मियों की इज्जत पर दंगाईयों द्वारा हमला होना टॉलरेट कर सकते हैं, लेकिन दंगाईयों के विरोध मे लिखे गये एक कविता को टॉलरेट नहीं कर सकते.
लोगों, अब आज की तारीख में लौट आईये. यह सिर्फ आप को याद दिला ने के लिये था की संजय निरुपम और महेश भट्ट जैसे नीच लोगों से जिनकी नियत क्या है उस पर अभी प्रकाश डाला है, उनके देशविरोधी वक्तव्योंसे आहत होना व्यर्थ है. इन सापों को दूध किसने पिलाया है? आपने. इनको व्होट किसने दिये हैं? आपने. इनकी फिल्में किसने देखी हैं और उस द्वारा इनकी जेबें किसने भरी हैं? आपने.
मित्रों, अपेक्षाभंग तभी होता है जब किसीसे कोई अपेक्षा हो. शुरवात में को वाक्य लिखा था वह फिरसे दोहराता हूं. "बेन्नु बिडद पिशाचि होन्नु कोट्टरे निंतीते". अर्थात, आप के पिछे पडा हुआ पिशाच्च उसको सोना देने से (वो जो करने निकला है वो करने से) रुक नहीं जाएगा. तो इस प्रवचन का तात्पर्य यह है की बिना किसी अपवाद के इन्हे सोना देना बंद करो. इन भूतों को सोना देने से कुछ फायदा नहीं. हम इन भूतों को बहिष्कार की लात जरूर मार सकते हैं. तो आगे क्या करना है, या फिर क्या नहीं करना है, आप को पता है.
बाकी जो है, सो हैयी है.
© मंदार दिलीप जोशी
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