Saturday, March 12, 2016

जेव्हा माझ्या कर्जांना (एका बँकरचे गार्‍हाणे)

जेव्हा माझ्या कर्जांना उधळी मुजोर माल्ल्या
माझा न राहतो मी हरवून हा 'सहारा'

काँग्रेस भाळ होते, होती प्रफुल्ल दक्षी
ओढून कर्ज घेते, हे राष्ट्रवादी पक्षी
शरदास सिंचनाच्या नाही मुळी फवारा | जेव्हा माझ्या कर्जांना...

डोळे मिटून घेतो, पण व्याजही फिटेना
हे कर्ज कोट्यावधींचे, लाखांतही चुकेना
देऊन थकलो मी सारखा तुला इशारा | जेव्हा माझ्या कर्जांना...

नोटांस हा बिअरचा, का सांग वास येतो
जिवंत कॅलेंडराचा, नुसताच भास होतो
केव्हा किंगफिशरचा उगवेल सांग तारा | जेव्हा माझ्या कर्जांना...

 © मंदार दिलीप जोशी
फाल्गुन शु. ४, शके १९३७

Wednesday, March 2, 2016

सारे जहां से अच्छा, इशरत जहां हमारा

सारे जहां से अच्छा
इशरत जहां हमारा
हम मोहताज हैं जिसकी
मौत का हमें सहारा

भारत में हों अगर हम,
रहता है दिल रोम में।
समझो फॅसिस्ट हमें भी,
मुसोलिनी बाप हमारा।। सारे...

घोटाला जिसका गहरा,
हमसाया काँग्रेसी का।
वो मंतरी हमारा,
वो पासबाँ हमारा।। सारे...

स्विसबँक में खेलते हैं,
जिसके हज़ारों खाते।
गुलशन है जिसके दम से,
ये जे.एन.यु हमारा।। सारे....

ऐ रोम-ए-नेप-ए-फ्लोरेन्स!
वो दिन है याद तुझको।
जीती जब मैंने दिल्ली,
वो राजीव जब दिल हारा ।। सारे...

मज़हब हमें सिखाता,
मजहब तू बदल देना।
काँगी हैं हम वतन हैं,
पाकीस्ताँ हमारा।। सारे...

केसरी-ओ-मिश्रा-ओ-सिंदीया,
सब मिट गए जहाँ से।
अब तक है मोदी बाक़ी,
नाम-ओ-निशाँ तुम्हारा।। सारे...

कुछ बात है कि हस्ती,
मिटती नहीं है इसकी।
सदियों बनाया दुश्मन,
सी.बी.आय. को तुम्हारा।। सारे..

ऐ 'सोनिया' तेरा पप्पू,
होता नहीं सयाना । 
मालूम कब प्रियांका,
जीते चुनाव हमारा।। सारे...


© मंदार दिलीप जोशी
माघ कृ ८, शके १९३७