Monday, February 6, 2017

प्रेश्यावृत्ती

मैं सबसे पहले तो जनरल वि. के. सिंगजी को धन्यवाद देना चाहूंगा की उन्होंने प्रेश्या (presstitute) इस संज्ञा को जन्म देकर भांड पत्रकारों को अपनी ()योग्यता का स्मरण कराया.

दुसरे
तो मैं उन सारी वेश्यायों की माफी मांगना चाहूंगा क्योंकि वह केवल अपना शरीर बेचती हैं, अपनी आत्मा और अपने देश का सौदा नहीं करतीं.

यह मै क्यों कह रहा हूं?


http://marathi.webdunia.com/article/national-marathi-news/soul-117020600005_1.html

यह खबर पढीये. इस मराठी खबर में लिखा है की एक महाराज के सामने नग्न अवस्था में सोने से एक जिंन आता है और उसके साथ शरीरसंबंध प्रस्थापित करने पर पैसों की बारीश होगी ऐसा ढोंग रचाकर एक महिला को फांसने का प्रयास करने वाले तीन लोगों के विरुद्ध पुलीस ने केस दर्ज कराया है.

जिन तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनके नाम हैं: 
रेमंड सॅम्युअल फ्रँकलिन (नांदेड सिटी) 
शेख झहीर अब्बास (चिंचवड)
रेश्मा रामदास पाडळे (चराडे वस्ती, वडगाव धायरी)

अब तीसरे नाम को देखकर पता चलता है की यह महिला है. तो महाराज इस संबोधन मे फिट होने वाले कौन है तो वह पहला या दूसरा नाम ही हो सकता है.

परंतु यह रेमंड ख्रिश्चन व्यक्ती है और शेख अब्बास मुसलमान व्यक्ती है, तो उन्हें महाराज कैसे कहा जा सकता है? चूंकि महाराज ये संबोधन केवल हिंदू साधूपुरुष को संबोधित करने हेतू उपयोग मे लाया जाता है, तो अगर गुनाहगार व्यक्ती अगर ख्रिश्चन या मुसलमान हो तो उन्हें खबर के शीर्षक तथा वर्णन मे 'महाराज' कैसे कहा जा सकता है? क्या उन्हें मुल्लापीर, फकीरया पाद्री, फादर क्यों नहीं कहा जाता? क्यों किया इस अखबार नें ऐसे?
 
क्योंकी इन खबरंडीयों को न्युजपेपर पढनेवालों की आदते पता है. बहुत से लोग कुछ बहुत ही रोचक खबर हो तो ही उसे पूरा पढते हैं. अन्यथा केवल शीर्षक को पढकर ही आगे निकलते हैं. लेकिन हमारा मस्तिष्क एक काँप्युटर से मिलता जुलता है. जैसे आप इंटरनेट सर्फ करते करते अनेकों साईट देखते हैं और आगे चले जलते हैं, फिरभी आपके काँप्युटर पर कुकीज और टेम्पररी इंटरनेट फाईल्स का जमावडा होने लगता है. आपके घर के काँप्युटर पर जमा हुए इन चीजों को आप नियमित तौर पर डिलीट करके साफ कर सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश आपके मस्तिष्क में जमा उन अनगिनत खबरों के शीर्षकों को आप डिलीट या साफ नहीं कर सकते.

अगर आप सतर्क हों, तो आपको ऐसा ही लगता रहेगा की किसी हिंदू महाराज के अत्याचार की खबर है. लेकिन सत्य तो कुछ और ही होता है. यह कोई पहली बार नहीं है जो ऐसे हुआ है. धर्म की दुहाई देकर चमत्कार करनेवाला बलात्कारी पुरुष अगर ख्रिश्चन या मुसलमान है तो खबर के साथ छपा स्केच किसी भगवा वस्त्रधारी महाराज का ही होता है और खबर के शीर्षक में भी उसका संबोधन "साधू", "महाराज", या फिर ऐसा ही कुछ होता है जिससे उडते उडते खबर पढने वाले को ये लगे की किसी हिंदू धर्म धर्मपुरुष की गंदी करतूत है.

अब ये दूसरी खबर पढीये कुछ महीनों पहले नजर आयी थी.
http://www.deccanchronicle.com/nation/crime/240616/meerut-dalit-girl-bobbitises-man-during-rape-attempt.html




इसका शीर्षक था: Dalit girl bobbitises man during rape attempt. यानी की एक दलित लडकीं ने उसपर बलात्कार का प्रयास करने वाले एक आदमी का लिंग काट दिया. इस खबरंडी का तो लिंग काटकर सूअर के मांस के साथ उसेही खिला देना चाहीये. क्योंकि इस शीर्षक और खबर में दोगुना हरामीपन किया गया है. इस खबर को उडते उडते पढकर आगे निकलने वालेलोगों के मस्तिष्क में दो बाते हमेशा के लिये रजिस्टर हो जायेंगी () जिस लडकी पर बलात्कार का प्रयत्न हुआ है वह दलित है () बलात्कार का प्रयास करने वाला आदमी जरूर उच्च जाती का पुरुष है.

इस खबरंडी ने इस बात का भी ध्यान रखा है की अगर आप शीर्षक के आगे निकल भी गये और पहला वाक्य पढ भी लिया तो भी आपके दिमाग मे उपरोक्त दो निष्कर्ष पक्के ही हो जायेंगे. पहला वाक्य है: Security has been stepped up in the village as a precautionary measure, since the accused and the girl belonged to different communities. इस संज्ञा "different communities" का यह प्रयोजन है की आप सोचें की वह दलित लडकी और उसपर बलात्कार का प्रयास करनेवाला दोनों एक ही धर्म के लेकिन अलग जातीयों के है, की एक हिंदू और दुसरा मुसलमान. तो "different communities" की जगह पर सही शब्द होने चाहीये थे "different religions".

पहली बात तो यह गंदा अपराध जाती आधारित नहीं है तो फिर लडकी के दलित होने के उल्लेख का कारण ही नहीं बनता है. दुसरी बात तो यह की इस खबर में बलात्कार का प्रयास करनेवाला एक मुसलमान है.  (The girl snatched the knife from the accused Raees when he attempted to force himself on her, and attacked his private parts with it.)

तो फिर खबरंडी महाशय, खबर का शीर्षक होना चाहीये Hindu dalit girl bobbitises Muslim man during rape attempt. क्यों, कुछ गलत कहा?

महोदय और महोदया, कुछ समझ में आया? फ्री प्रेस और फ्रीडम ऑफ स्पीच इसी को कहते है!!!

आप सब से निवेदन हैकी ऐसी खबरें अगर पढेंतो पूरी पढें और ऐसा हरामीपन अगर नजर आयेतो तुरंत उस अखबारको ईमेल भेजकर उसकी जरूर 'खबर लें'.

© मंदार दिलीप जोशी