Saturday, March 4, 2017

गुरमेहर, समाज, और पालनपोषण

एक पुरानी आफ्रीकी कहावत है, "It takes a village to raise a child."

गुरमेहर बहुत छोटी थी जब इसके पिता काश्मीर मे आतंकवादियों के गोली का शिकार हुए. पेट्रोल पंप एवं मिली हुई बडी धनराशि से आय की समस्या तो हल हो गयी, परंतु पेट्रोल पंप संभालने का काम एवं घर की अन्य जिम्मेदारियों ने कदाचित इसकी मां को इस पर संस्कार करने का अवकाश नहीं दिया, और यह देशविघातक शक्तियों के लिये एक आसान सा लक्ष्य बन गयी.

अगर आपके आसपास ऐसा परिवार हो, तो उनके बच्चों की मित्रता अपने बच्चों से अवश्य करवाएं; ऐसे बच्चों को अपने घर खाने पर बुलाएं; उन्हे अपने साथ मंदिर, सिनेमा, अन्य सार्वजनिक एवं पारिवारिक कार्यक्रमों मे ले जाएं; उन्हे अच्छी किताबें भेंट करें; उनके मित्रपरिवार से परिचित हों; उनकी मां से, या अगर मां नहीं है और पिता हैं तो उनसे, बच्चों के भविष्य के विषय मे चर्चा करें; इत्यादि.

सहाय्यता केवल पैसों से नहीं की जाती.

और हां यह पहले होता था हमारी संस्कृति में, कोई आफ्रीका से आयात की हुई कल्पना नहीं है. आयात केवल कहावत है: It takes a village to raise a child.




 © मंदार दिलीप जोशी

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